नई दिल्ली
दिल्ली स्थित अपने सरकारी आवास से भारी मात्रा में नकदी मिलने के मामले में हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। माना जा रहा है कि उन्हें पद से हटाने की तैयारी चल रही है।
जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव
पता चला है कि सरकार संसद के मानसून सत्र में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव ला सकती है। गत आठ मई को भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा के घर नकदी मिलने के मामले में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखा था और उसके साथ ही तीन सदस्यीय जांच कमेटी की रिपोर्ट भी उन्हें भेजी थी।
न्यायाधीश को संसद में महाभियोग लाकर ही हटाया जा सकता है
जस्टिस खन्ना ने आंतरिक कमेटी की रिपोर्ट पर जस्टिस यशवंत वर्मा का जवाब भी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से साझा किया था। माना जा रहा है कि जस्टिस खन्ना ने अपने पत्र में जस्टिस यशवंत वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश की थी।
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीश को संसद में महाभियोग लाकर ही हटाया जा सकता है। वैसे महाभियोग की प्रक्रिया काफी जटिल है और आज तक कोई भी न्यायाधीश इस प्रक्रिया से नहीं हटाया गया है।
घटना के वक्त जस्टिस वर्मा दिल्ली हाई कोर्ट में कार्यरत थे
घटना के वक्त जस्टिस वर्मा दिल्ली हाई कोर्ट में कार्यरत थे, आजकल उनका तबादला इलाहाबाद हाई कोर्ट कर दिया गया है। जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास में 14 मार्च की रात 11.35 पर आग लग गई थी। अग्निशमन टीम को आग बुझाने के दौरान उनके आवास में स्थित एक स्टोर रूप में भारी मात्रा में जली हुई नकदी मिली थी।
जांच रिपोर्ट सीजेआई को सौंपी गई
तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना ने मामले की जांच के लिए तीन न्यायाधीशों की कमेटी गठित की थी। कमेटी ने गत चार मई को अपनी रिपोर्ट सीजेआई को सौंप दी थी। माना जा रहा है कि तीन न्यायाधीशों की कमेटी ने जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों को सही पाया। हालांकि जस्टिस वर्मा ने पहले ही आरोपों से इन्कार करते हुए इसे उन्हें फंसाने की साजिश बताया था।
तत्कालीन सीजेआइ ने कमेटी की रिपोर्ट मिलने के बाद नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का पालन करने हुए वह रिपोर्ट जस्टिस वर्मा को भेजी थी और उनसे उस पर जवाब भी मांगा था। जस्टिस वर्मा ने छह मई को अपना जवाब सीजेआई को सौंप दिया था।
जस्टिस संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति को भेजी रिपोर्ट
यह भी माना जा रहा है कि जस्टिस वर्मा के पद से इस्तीफा देने से मना करने के बाद जस्टिस संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को लिखा और तीन न्यायाधीशों की कमेटी की रिपोर्ट भी उन्हें भेजी।
उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पहले ही कई मौकों पर जस्टिस वर्मा के घर बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के मामले में एफआइआर दर्ज करके जांच शुरू न होने पर सवाल उठा चुके हैं।
संसद में महाभियोग का प्रस्ताव लाने की तैयारी में सरकार
अब बताया जा रहा है कि सरकार भी जस्टिस वर्मा के खिलाफ संसद में महाभियोग का प्रस्ताव लाने की तैयारी में है। मानसून सत्र में सरकार महाभियोग का प्रस्ताव ला सकती है।
वैसे बताते चलें कि जिस दिन तत्कालीन सीजेआइ संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को लिखा था और तीन न्यायाधीशों की आंतरिक कमेटी की रिपोर्ट व जस्टिस वर्मा का जवाब उन्हें भेजा था, तभी इसे महाभियोग प्रक्रिया की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा था।
दोषी पाए जाने पर आरोपी जज के सामने दो ही विकल्प
विशेषज्ञों का कहना है कि तीन सदस्यीय आंतरिक जांच कमेटी की रिपोर्ट में दोषी पाए जाने पर आरोपी जज के सामने दो ही विकल्प होते हैं कि या तो वह पद से इस्तीफा दें या फिर महाभियोग का सामना करें।
वैसे तो आठ मई को सुप्रीम कोर्ट की जारी विज्ञप्ति में स्पष्ट नहीं है कि सीजेआइ ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को क्या लिखा है लेकिन माना जा रहा है कि तय प्रक्रिया के मुताबिक उन्होंने जस्टिस वर्मा को हटाने का प्रस्ताव शुरू करने की ही सिफारिश की होगी।
जस्टिस वर्मा से न्यायिक कामकाज वापस लिया जा चुका है
सीजेआइ के कहने पर जस्टिस वर्मा से न्यायिक कामकाज वापस लिया जा चुका है। बता दें कि इस मामले में तत्कालीन सीजेआइ खन्ना ने शुरुआत से ही सख्त रुख अपनाया था।
उन्होंने जस्टिस वर्मा के घर नकदी मिलने के मामले में पहले दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से रिपोर्ट मांगी थी और जस्टिस वर्मा से भी जवाब मांगा गया था। दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने सीजेआइ को भेजी रिपोर्ट में मामले की गहराई से जांच की जरूरत बताई थी जबकि जस्टिस वर्मा ने आरोपों को गलत बताते हुए उन्हें फंसाने की कोशिश बताया था।
जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों की जांच को बनाई कमेटी
सीजेआइ ने ये सारी सामग्री सुप्रीम कोर्ट वेबसाइट पर अपलोड कर दी थी, ऐसा पहली बार हुआ। इसके बाद सीजेआइ ने जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों की जांच के लिए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधवालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की न्यायाधीश अनु शिवरामन की तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई थी, जिसने तीन मई को अपनी रिपोर्ट सीजेआइ को सौंप दी थी।