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अयोध्या
गर्मियों में कुछ मीठा और तरावट भरा खाने का मन हो तो एक ही फल ध्यान में आता है। तरबूज। रामनगरी में इन दिनों बोये जाने वाले तरबूज के हर निवाले में मिठास का झोंका होता है। इसी विशेषता के कारण सरस्वती प्रजाति का तरबूज उत्पादक किसानों की पहली पसंद बन चुका है। इसका मीठा और रसीला गूदा लू और गर्मी के प्रकोप से बचने का सबसे अच्छा तरीका भी होता है।
हल्के हरे रंग के छिलके वाले सरस्वती प्रजाति के तरबूज रामनगरी के प्रत्येक ब्लाक में उत्पादित किए जा रहे हैं। जिले में करीब पांच सौ हेक्टेयर में तरबूज का उत्पादन होता है। प्रति हेक्टेयर करीब दो सौ क्विंटल तक तरबूज का उत्पादन होता है, जबकि गहरे हरे रंग के शुगर बेबी प्रजाति के तरबूज के दिन अब लद चुके हैं।
कारण सरस्वती प्रजाति के तरबूज की मिठास शुगर बेबी पर भारी पड़ रही है। सरस्वती प्रजाति के तरबूज की बोआई मुख्यत: फरवरी माह में की जाती है और गर्मी की शुरुआत में ही ये बाजार में आ जाते हैं। इसमें विटामिन सी, ए और पोटेशियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है।
काशी मधु प्रजाति का खरबूजा
इन्हीं गुणों से युक्त काशी मधु प्रजाति के खरबूजे का बोलाबाला है। इस प्रजाति के खरबूजे की मिठास भी खाने वालों को बेहद भाती है। अयोध्या के करीब-करीब प्रत्येक ब्लाक में पांच सौ हेक्टेयर में इनकी खेती होती है। हालांकि, तरबूज की तुलना में खरबूजे का उत्पादन थोड़ा कम होता है।
प्रति हेक्टेयर इनका उत्पादन करीब डेढ़ सौ क्विंटल होता है। आचार्य नरेंद्रदेव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के सब्जी विज्ञानी डा. आस्तिक झा कहते हैं, तरबूज की सरस्वती और खरबूजे की काशी मधु प्रजाति इन दिनों सबसे ज्यादा पसंद की जा रही है।
देशी की जगह हाईब्रिड खीरा बन रहा किसानों की पसंद
अयोध्या में हरिंग्टनगंज, बीकापुर, मवई व तारुन में करीब चार सौ हेक्टेयर में खीरे की बोआई होती है। रामनगरी के खीरे की विशेषता यह है कि इसमें क्रिस्पीनेस होती है, जबकि पूर्वोत्तर में उत्पादित होने वाला खीरा जूसी होता है। इस क्षेत्र का खीरा पकने पर भूरे रंग का हो जाता है, जबकि पूर्वोत्तर की प्रजाति के खीरे पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं।
हालांकि, कम उत्पादन के कारण देशी प्रजाति के खीरे का स्थान अब हाईब्रिड लेते जा रह हैं। खीरे में भरपूर मात्रा में विटामिन बी, सी व पोटेशियम पाया जाता है। रामनगरी में करीब दो सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर खीरे का उत्पादन होता है, जबकि इसके सापेक्ष ककड़ी मुख्यत: मवई ब्लाक में लगभग 30 हेक्टेयर में होती है।