वट सावित्री व्रत के संबंध में कथा है कि द्युुमुत सेन के पुत्र सत्यवान से सावित्री का विवाह हुआ था। विवाह पूर्व नारद जी ने कुंडली देख कर बताया था कि सत्यवान विवाहोपरांत मातृ एक वर्ष ही जीवित रहेगा, लेकिन दृढ़ व्रता सावित्री ने अपने मन में अंगीकार किए पति में परिवर्तन नहीं किया।
अल्पायु पति की प्रेम से सेवा की। एक वर्ष की समाप्ति पर सत्यवान वन में गए तो एक विषधर सर्प ने उन्हें डस लिया। वह अचेत होकर गिर पड़े। इसी अवस्था में यमराज आए और सत्यवान के सूक्ष्म शरीर को ले जाने लगे। वट सावित्री के जप-तप-प्रार्थना से प्रसन्न होकर सत्यवान को जीवित कर दिया और सौ पुत्रों का वरदान दिया।