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वाराणसी
सनातन धर्म में ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक अखंड सौभाग्य कामना से वट सावित्री व्रत का विधान है। इस बार तीन दिवसीय व्रत का आरंभ 24 मई को होगा, जो 26 मई तक चलेगा। इस बार अमावस्या दो दिनी है।
इसमें 26 मई को श्राद्ध व वट सावित्री अमावस्या तो 27 को स्नान-दान की अमावस्या है। यह मंगलवार (भौमवार) को पड़ने से शास्त्र अनुसार भौमवती अमावस्या कहलाती है। तिथि विशेष पर गंगा स्नान से करोड़ों सूर्य ग्रहण के बराबर स्नान का फल मिलता है। वट सावित्री व्रत का पारन 27 मई को प्रात: 8.31 बजे के बाद किया जाएगा।
ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार, ज्येष्ठ अमावस्या तिथि 26 मई को सुबह 10.54 बजे लग रही है, जो 27 मई को सुबह 8.31 बजे तक रहेगी। 27 मई को ही शनि जयंती भी मनाई जाएगी।
पूजन विधान-
ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी को प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर सभी तरह के सभी तरह के दोषों के परिहारार्थ ब्रह्म सावित्री व सत्य वट सावित्री के प्रित्यर्थ वट सावित्री व्रत का संकल्प लेना चाहिए। अमावस्या तिथि में वट वृक्ष के समीप बैठ कर बांस के पात्र में सप्त धान्य भर कर उसे दो वस्त्रों से ढंकना चाहिए।
दूसरे पात्र में स्वर्ण की ब्रह्म सावित्री व सत्य सावित्री की मूर्ति स्थापित कर पंचोपचार या षोडशोपचार, गंध-अक्षतादि से पूजन कर वट वृक्ष में सूत लपेट कर उसका यथा विधि पूजन करना चाहिए। पूजनोपरांत वट वृक्ष में विषम संख्या में परिक्रमा व सावित्री को अर्घ्य देकर सौभाग्य, पुत्र-पौत्रादि के प्रार्थना करनी चाहिए।
कथा-
वट सावित्री व्रत के संबंध में कथा है कि द्युुमुत सेन के पुत्र सत्यवान से सावित्री का विवाह हुआ था। विवाह पूर्व नारद जी ने कुंडली देख कर बताया था कि सत्यवान विवाहोपरांत मातृ एक वर्ष ही जीवित रहेगा, लेकिन दृढ़ व्रता सावित्री ने अपने मन में अंगीकार किए पति में परिवर्तन नहीं किया।
अल्पायु पति की प्रेम से सेवा की। एक वर्ष की समाप्ति पर सत्यवान वन में गए तो एक विषधर सर्प ने उन्हें डस लिया। वह अचेत होकर गिर पड़े। इसी अवस्था में यमराज आए और सत्यवान के सूक्ष्म शरीर को ले जाने लगे। वट सावित्री के जप-तप-प्रार्थना से प्रसन्न होकर सत्यवान को जीवित कर दिया और सौ पुत्रों का वरदान दिया।