रसायनों के खतरनाक मिश्रण के संपर्क में आ रहे हैं जलीय जीव
मछली की प्रजातियां खतरे में
शोधकर्ताओं ने गंगेटिक डाल्फिन द्वारा खाए जाने वाली मछली की प्रजातियों में 39 प्रकार के अंत:स्त्रावी-विघटनकारी रसायनों का विश्लेषण किया। अध्ययन के अनुसार, निष्कर्षों से पता चला कि डाल्फिन द्वारा शिकार की जाने वाली मछलियों में औद्योगिक प्रदूषक डाई (टू-एथिलहेक्सिल) फथलेट (डीईएचपी) और डाई एन ब्यूटाइल फथलेट (डीएनबीपी) जैसे महत्वपूर्ण जैव संचयन होते हैं।
डाल्फिन की आबादी में बड़ी कमी
गंगा में रहने वाली डाल्फिन की आबादी में 1957 के बाद से 50 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है और भारत के राष्ट्रीय जलीय जीव के रूप में नामित होने के बावजूद उनकी संख्या लगभग एक चौथाई कम हो गई है।
प्रदूषण के लिए कई स्त्रोतों को जिम्मेदार ठहराया
अध्ययन में प्रदूषण के लिए कई स्त्रोतों को जिम्मेदार ठहराया गया है, जिसमें खेती में इस्तेमाल किये जाने वाले कीटनाशक व खरपतवार, कपड़ा क्षेत्र से औद्योगिक अपशिष्ट, वाहनों से उत्सर्जन, खराब ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में बढ़ता पर्यटन शामिल है।
अंत: स्त्रावी-विघटनकारी रसायनों के प्रभाव विशेष रूप से चिंताजनक हैं, क्योंकि गंगेटिक डाल्फिन के अंदर हार्मोनल प्रणालियों को प्रभावित कर सकते हैं, उनमें प्रजनन संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र में लंबे समय तक बने रह सकते हैं।