Wednesday, August 6, 2025
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जीसीसी में स्किल्स की बढ़ती मांग: AI, मशीन लर्निंग और क्लाउड कंप्यूटिंग में एक्सपर्ट्स की आवश्यकता

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नई दिल्ली,|

भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (जीसीसी) तेजी से पैर पसार रहे हैं। जीसीसी युवाओं के लिए बड़ा मौका लेकर आए हैं। अनेक वैश्विक कंपनियां भारतीय प्रतिभाओं को रखकर कम लागत का लाभ उठा रही हैं। रिपोर्ट्स इस बात की तसदीक करती है कि 2030 तक लगभग 3 मिलियन (30 लाख) कर्मचारियों को इसमें रोजगार मिल सकता है। फर्स्ट मेरिडिन के अनुसार, इस वृद्धि से फ्रेशर्स के लिए लगभग 4 लाख नई नौकरियों के मौके बनेंगे। भारत में पिछले कुछ समय में जिस तरह जीसीसी का विस्तार हुआ और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों का भारतीय वर्कफोर्स में भरोसा बढ़ा है, उसे देखकर लगता है कि भविष्य में भी जीसीसी की ग्रोथ स्टोरी में भाग लेने के लिए भारतीयों को अनेक अवसर मिलेंगे। जीसीसी की इस बढ़ोतरी की वजह भारत में मौजूद टैलेंट, उच्च डिजिटल साक्षरता, कम और आईटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, और डेटा इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञ लोगों की भरमार के कारण संभव हो पा रहा है। भारत GCCs के लिए प्रमुख गंतव्य बनता जा रहा है, और यह बाजार 2030 तक 110 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।​ जीसीसी अब केवल बैक-एंड सपोर्ट केंद्र नहीं रह गए हैं। ये अब नवाचार, प्रोडक्ट डेवलपमेंट और अनुसंधान के मुख्य केंद्र बनते जा रहे हैं, खासकर अत्याधुनिक तकनीकों में। इस कारण भारत विश्व की प्रमुख पसंद बन रहा है।

एक्सपर्ट मानते हैं कि तीन-चार साल बाद जो छात्र ग्रेजुएट बन कर निकलेंगे उनके पास जीसीसी में पर्याप्त अवसर होंगे। बस वे इंडस्ट्री के ट्रेंड के हिसाब से स्किल हासिल करें। जीसीसी लगातार नई टेक्नोलॉजी को अपना रहे हैं। वे एआई, मशीन लर्निंग, क्लाउड कंप्यूटिंग और साइबर सिक्योरिटी को अपने ऑपरेशन में शामिल करने में भी अग्रणी होंगे। वर्कफोर्स में शामिल होने वाले छात्र अगर इन अधिक डिमांड वाले क्षेत्रों पर फोकस करें तो उनकी एंप्लॉयबिलिटी बढ़ जाएगी। रिपोर्ट बताती है कि भारत में GCCs का विस्तार तो हो ही रहा है, लेकिन अब ये केवल सहयोगी या बैकएंड यूनिट नहीं रह गए हैं। ये अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को अपनाने में अग्रणी हैं, रणनीतिक निर्णयों में भूमिका निभा रहे हैं और नवाचार के वैश्विक केंद्र बनते जा रहे हैं।

2026 तक जीसीसी में लगभग 1.5 लाख नौकरियों के सृजन की उम्मीद है, जिनमें से एक लाख से अधिक फ्रेशर्स के लिए होंगी। इसके अतिरिक्त, वर्तमान में जीसीसी में महिलाओं की भागीदारी 40% है, और यह आंकड़ा 3-5% तक बढ़ने की संभावना है, क्योंकि कंपनियां विविधता, समानता और समावेशन को प्राथमिकता दे रही हैं।​

शारदा यूनिवर्सिटी के स्किल और करियर सर्विसेज के डायरेक्टर धीरज शर्मा कहते हैं कि भारत में एक बड़ा, प्रशिक्षित और अंग्रेज़ी बोलने वाला कार्यबल उपलब्ध है, विशेषकर स्टेम (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स) क्षेत्रों में। एआई, मशीन लर्निंग और डेटा इंजीनियरिंग जैसी उभरती तकनीकों में प्रशिक्षित प्रोफेशनल्स की भरमार है जो अनुकूलन और बदलाव के प्रति काफी लचीले हैं।

इस तरह की मांग अधिक

जीसीसी में दो तरह की स्किल की डिमांड है। नए जीसीसी में सामान्य स्किल वालों की मांग है। इनमें प्रोसेस, टेक्नोलॉजी आदि शामिल हैं। पुरानी बड़ी कंपनियों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, प्लेटफॉर्म, साइबर सिक्योरिटी आदि के स्पेशलिस्ट को लिया जा रहा है। पहले बीपीओ जॉब में हजारों की संख्या में लोग रखे जाते थे जो पे-रोल प्रोसेसिंग, बिलिंग आदि के काम करते थे। अब उनके भीतर भी टेक्नोलॉजी का समावेश हो रहा है। इसलिए सब कुछ मिक्स हो रहा है। विभावंगल अनुकूलकारा प्रा. लि. के संस्थापक व प्रबंध निदेशक सिद्धार्थ मौर्य कहते हैं कि ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) में स्किल डिमांड लगातार बदल रही है। आज सिर्फ AI, क्लाउड या डेटा इंजीनियरिंग जानना काफी नहीं, बल्कि कंपनियां ऐसे प्रोफेशनल्स चाहती हैं जो इन तकनीकों को सही तरीके से लागू भी कर सकें। फुल स्टैक डेवलपमेंट, साइबर सुरक्षा, आरपीए और डेवऑप्स जैसे फील्ड्स में एक्सपर्ट्स की मांग के साथ-साथ सेक्टर स्पेसिफिक स्किल्सॉ जैसे फिनटेक या हेल्थकेयर एनालिटिक्स की डिमांड भी तेज़ी से बढ़ी है।

भारत में किफायती है जीसीसी खोलना

धीरज कहते हैं कि भारतीय कार्यबल की लागत पश्चिमी देशों की तुलना में कहीं अधिक किफायती है। साथ ही भारत में बुनियादी ढांचे की लागत भी अपेक्षाकृत कम है। इस कारण भारत में ऑपरेशंस सेट करना अधिक आरओआई (रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट) के साथ गुणवत्तापूर्ण सेवाएं प्रदान करने का सबसे किफायती विकल्प बन गया है। वहीं “डिजिटल इंडिया” जैसी नीतियां, अनुसंधान और विकास के लिए टैक्स प्रोत्साहन और ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस में सुधारों ने भारत को वैश्विक कंपनियों के लिए एक आकर्षक गंतव्य बना दिया है। भारत का समय अंतर अंतरराष्ट्रीय टीमों के साथ मिलकर 24×7 संचालन में मदद करता है, जिससे उत्पादकता और टर्नअराउंड टाइम में सुधार होता है।

डिजिटल एमिनेंट के संस्थापक मुकुल शर्मा मानते हैं कि कम लागत, मजबूत डिजिटल ढांचा और लगातार बढ़ते इनोवेशन ने भारत को R&D और ऑटोमेशन जैसे क्षेत्रों में वैश्विक कंपनियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना दिया है। डिजिटल इंडिया जैसी सरकारी योजनाओं ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है, जिससे विदेशी निवेश को प्रोत्साहन मिला है।

मुकुल शर्मा कहते हैं कि भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) का तेजी से फैलाव महज एक आर्थिक रुझान नहीं, बल्कि रणनीतिक आवश्यकता बन गया है। इसकी सबसे बड़ी वजह है भारत का विशाल और कुशल तकनीकी मानव संसाधन चाहे वह इंजीनियर हों, डेटा साइंटिस्ट्स या फिर AI, मशीन लर्निंग और डेटा इंजीनियरिंग जैसी अत्याधुनिक तकनीकों में माहिर प्रोफेशनल्स।

स्ट्रैटेजिक और इनोवेटिव कामों पर अधिक फोकस

सिद्धार्थ मौर्य कहते हैं कि अब केवल टेक्निकल नॉलेज नहीं, बल्कि डिजिटल एजिलिटी, टीमवर्क और प्रॉब्लम सॉल्विंग जैसे सॉफ्ट स्किल्स को भी उतना ही महत्व दिया जा रहा है। जीससी का फोकस अब टास्क-ओरिएंटेड वर्क से हटकर स्ट्रैटेजिक और इनोवेटिव कामों पर आ गया है। स्किल गैप को पाटने के लिए कंपनियां यूनिवर्सिटीज के साथ मिलकर कस्टमाइज्ड कोर्स तैयार कर रही हैं। साथ ही AWS, Azure और TensorFlow जैसे प्लेटफॉर्म्स की प्रोफेशनल सर्टिफिकेशंस को भी बढ़ावा मिल रहा है ताकि इंडस्ट्री-रेडी टैलेंट तैयार किया जा सके।

बेहतर वर्कफोर्स

धीरज कहते हैं कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय कार्यबल ने जिस तरह से रिमोट वर्क को अपनाया और जटिल वैश्विक प्रोजेक्ट्स को सफलतापूर्वक डिलीवर किया, उसने दुनिया को भारतीय टीमों की परिपक्वता और भरोसेमंद कार्य संस्कृति का परिचय कराया। अब मेट्रो शहरों से आगे बढ़कर कंपनियां पुणे, हैदराबाद, कोच्चि, अहमदाबाद जैसे उभरते हब्स में विस्तार कर रही हैं। इससे उन्हें नए टैलेंट तक पहुंच और कम लागत में ऑपरेशन चलाने का लाभ मिल रहा है।

बढ़ रही है महिलाओं की भागीदारी

सिद्धार्थ मौर्य कहते हैं कि महिलाओं की भागीदारी भी जीसीसी सेक्टर में उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है। अब वर्कफोर्स में उनका हिस्सा 40% तक पहुंच चुका है। कंपनियां न सिर्फ महिलाओं के लिए लचीले वर्क मोड दे रही हैं, बल्कि रिटर्नशिप प्रोग्राम्स, लीडरशिप पाइपलाइंस और मेंटॉरशिप मॉडल्स के ज़रिए उन्हें करियर में आगे बढ़ने का मौका दे रही हैं।

टेक महिंद्रा और असेंचर जैसी कंपनियों ने मिड-कैरियर ब्रेक के बाद काम पर लौटने वाली महिलाओं के लिए खास पहल की है। वहीं नैस्कॉम की टेक फॉर वुमेन मुहिम और सैलरी ऑडिट्स जैसे कदम डीईआई (Diversity, Equity, Inclusion) को व्यवहार में उतारने के सफल उदाहरण हैं।

टियर-2 और टियर-3 शहर नए टेक टैलेंट हब

महामारी के बाद कार्यसंस्कृति में आए बदलाव और रिमोट वर्क की स्वीकार्यता ने इस विस्तार को और तेज किया है। राज्य सरकारों की स्किल डेवलपमेंट योजनाएं और स्थानीय कॉलेजों के साथ हो रहे इंडस्ट्री टाई-अप ने ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में भी तकनीकी प्रतिभा को निखारने का काम किया है। मुकल शर्मा कहते हैं कि आज आईटी, बीएफएसआई, हेल्थकेयर और रिटेल जैसे सेक्टर जीसीसी के बड़े हब बन चुके हैं, जहां क्लाउड आर्किटेक्ट्स, AI/ML स्पेशलिस्ट्स और साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट्स की मांग तेजी से बढ़ी है। खास बात यह है कि अब ये सेंटर सिर्फ मेट्रो शहरों तक सीमित नहीं हैं। कोयंबटूर, भुवनेश्वर और जयपुर जैसे टियर-2 और टियर-3 शहर भी नए टेक टैलेंट हब के रूप में उभर रहे हैं।

जीसीसी के सामने चुनौतियां

एक्सपर्ट मानते हैं कि कंपनियों को चाहिए कि वे अपने AI प्रोग्राम्स, स्किलिंग इनिशिएटिव्स और ऑटोमेशन प्रयासों को प्रमुखता से प्रस्तुत करें। जो GCCs इन क्षेत्रों में थॉट लीडर बनेंगे, वही भविष्य को आकार देंगे। बढ़ती आमदनी के साथ, युवा अब सिर्फ अच्छी सैलरी नहीं, बल्कि प्रिमियम करियर एक्सपीरियंस की तलाश में हैं। ठीक वैसे जैसे उपभोक्ता अब हाई-एंड प्रोडक्ट्स चुनते हैं। ये वही ट्रेंड है जो HUL जैसे ब्रांड्स को प्रीमियम सेगमेंट की ओर ले जा रहा है।

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