गुना |
जुलाई 2024 में गुना पुलिस की कस्टडी में पारदी समुदाय 24 साल के युवक देवा पारदी की हुई मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। अदालत ने कहा कि युवक की मौत न्यायिक जांच और मेडिकल रिपोर्ट में साफ तौर पर ‘हिंसा’ का नतीजा बताई गई है, फिर भी 10 महीने बीतने के बाद भी जिम्मेदार पुलिसकर्मी खुलेआम घूम रहे हैं।
कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए इसे ‘अमानवीय’ और ‘हास्यास्पद’ करार दिया। अदालत ने यह भी कहा कि राज्य सरकार जानबूझकर अपने पुलिसकर्मियों को बचा रही है।
बता दें कि 15 जुलाई 2024 को बीलाखेड़ी गांव निवासी 24 साल के देवा पारदी की बारात गुना शहर के गोकुल सिंह चक्क पहुंचने वाली थी। लेकिन इससे एक दिन पहले, यानी 14 जुलाई की शाम करीब 4:30 बजे, पुलिस गांव पहुंची और जिस ट्रैक्टर से बारात जानी थी, उसी में बैठाकर देवा और उसके चाचा गंगाराम को हिरासत में ले गई। पुलिस का कहना था कि उन्हें एक चोरी के मामले में पूछताछ और बरामदगी करनी थी।
SC ने कहा- यह हास्यास्पद और अमानवीय पीड़ित की मां अंसुरा बाई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर 29 अप्रैल को सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार की तीखी आलोचना की और कहा कि राज्य सरकार पुलिसकर्मियों को बचा रही है।
कोर्ट ने टिप्पणी की कि 24 वर्षीय विमुक्त पारदी जनजाति के युवक देवा पारदी की हत्या के मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट की जांच और मेडिकल रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि उसकी मौत हिंसा के कारण हुई। इसके बावजूद, गुना पुलिस ने घटना के 10 महीने बाद भी आरोपी पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार नहीं कर पाई।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के रवैये को “हास्यास्पद” और “अमानवीय” करार दिया। न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, यह हास्यास्पद है, एक अमानवीय बात है। अपने ही अधिकारियों पर कार्रवाई करने में आपको 10 महीने लग जाते हैं?
जज बोले- अपराधी आजादी से घूम रहे, यह भयावह सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी कि दो पुलिस अधिकारियों को “लाइन ड्यूटी पर भेजा गया है।” इस पर न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने तीखे और व्यंग्यात्मक लहजे में प्रतिक्रिया देते हुए कहा- ‘ओह, हिरासत में मौत के मामले में यह तो बेहद शानदार प्रतिक्रिया है। पक्षपात और अपने ही अधिकारियों को बचाने का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है?’
न्यायमूर्ति मेहता ने देश में हिरासत में हो रही हिंसा पर गहरी चिंता जताते हुए कहा- ‘यह दुर्भाग्य है कि सुप्रीम कोर्ट के बार-बार के निर्देशों के बावजूद पुलिस हिरासत में हिंसा की घटनाएं थम नहीं रही हैं और अपराधी आजादी से घूम रहे हैं। यह भयावह स्थिति है और फिर आप एकमात्र गवाह को ही खत्म करने की कोशिश करते हैं- क्योंकि यही अपराध से बच निकलने का सबसे आसान तरीका है।’
गंगाराम की जमानत और सुरक्षा की मांग की पीड़ित की मां अंसुरा बाई की ओर से एडवोकेट पायोशी रॉय ने देवा के चाचा गंगाराम के लिए जमानत की मांग की। तर्क दिया कि गंगाराम को प्रताड़ित किया जा रहा है। वह देवा की हत्या का एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी गवाह है, इसके बावजूद उसे लंबे समय से जेल में रखा गया है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जताई। अदालत ने टिप्पणी की- ‘वह अभी हिरासत में सुरक्षित है। लेकिन अगर वह बाहर आया, तो संभव है कि वह किसी ट्रक से कुचला जाए, और उसे ‘दुर्घटना’ करार दे दिया जाए। आप एकमात्र गवाह खो देंगे।’ कोर्ट ने कहा कि देश में इस तरह की घटनाएं सामान्य हैं, जो व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं।
‘हिरासत में हत्याएं अब आम हो गई हैं’-सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट रॉय ने सुप्रीम कोर्ट में देवा पारदी के चाचा गंगाराम की खराब स्वास्थ्य स्थिति पर चिंता जताई। उन्होंने बताया कि गंगाराम को हिरासत में प्रताड़ित किया गया है और जेल अधीक्षक से कई बार अनुरोध करने के बावजूद उसे पर्याप्त चिकित्सा सुविधा नहीं दी गई।
एडवोकेट की दलीलों के जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‘कोर्ट को अच्छे से पता है कि गवाहों को अक्सर मार दिया जाता है और बाद में उनकी हत्या को एक सामान्य दुर्घटना करार दे दिया जाता है। पुलिस हिरासत में हत्याएं आम हो चुकी हैं, इसलिए संदिग्ध परिस्थितियों में गवाहों की मौत भी अब असामान्य नहीं रही।’
इसके बाद कोर्ट ने जेल प्रशासन को निर्देश दिया कि गंगाराम को तत्काल और समुचित चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाए।
प्रदर्शन के बाद पुलिसकर्मियों मुकदमा हुआ था 14 जुलाई की शाम देवा पारदी के परिजनों को जिला अस्पताल से सूचना मिली कि एक पारदी युवक को पोस्टमॉर्टम रूम में लाया गया है। जब परिवार के सदस्य अस्पताल पहुंचे, तो उन्हें जानकारी मिली कि देवा की मौत पुलिस कस्टडी में हो गई है। यह खबर फैलते ही बड़ी संख्या में पारदी समुदाय की महिलाएं अस्पताल पहुंच गईं।
स्थिति उस समय गंभीर हो गई जब देवा की चाची और उसकी होने वाली दुल्हन ने अपने ऊपर पेट्रोल डालकर आत्मदाह की कोशिश की। हालांकि, मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने उन्हें बचा लिया। पीड़ित महिलाओं का आरोप था कि म्याना थाने में देवा पारदी और उसके चाचा के साथ बेरहमी से मारपीट की गई, जिससे देवा की मौत हो गई।
घटना के दो दिन बाद, 17 जुलाई को पारदी समुदाय की महिलाओं ने कलेक्ट्रेट कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान शासन-प्रशासन का ध्यान आकर्षण करने महिलाओं ने आक्रोश में अपने कपड़े तक उतार दिए थे। मामले में म्याना थाने के 7-8 पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। उन पर गैर इरादतन हत्या और मारपीट जैसी गंभीर धाराओं में केस दर्ज हुआ।