Thursday, June 19, 2025
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मैथ्स-इंग्लिश पढ़ाने वाले टीचर से फिंकवाते थे गोबर:NTPC कर्मचारी भैंसों के तबेले में सोते थे; गुना में रेस्क्यू कराए गए मजदूरों की कहानी

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गुना |

एक टीचर जो कभी गुजरात के स्कूल में इंग्लिश और मैथ्स पढ़ाता था, पिछले 19 वर्षों से मध्यप्रदेश के एक गांव में बंधुआ मजदूर की जिंदगी जी रहा था। मानसिक रूप से कमजोर मानकर उसे खेतों और पशुओं के बीच झोंक दिया गया, वह भी बिना सैलरी के। यह कहानी नहीं, बल्कि सच्ची घटना है उस ‘रामा’ की, जिसे गुना प्रशासन ने शुक्रवार को बीनागंज क्षेत्र से मुक्त कराया।

रामा अकेले नहीं थे। जिला प्रशासन ने दबिश देकर बीनागंज और आसपास के गांवों से 16 ऐसे लोगों को रेस्क्यू किया, जिनसे जबरन मजदूरी कराई जा रही थी। प्रशासन को जैसे ही इनकी जानकारी मिली, एक गोपनीय ऑपरेशन के तहत पुलिस, राजस्व और नगरपालिका की संयुक्त टीमों ने एक साथ कई स्थानों पर दबिश दी और इन सभी को छुड़ाया।

इन लोगों को न केवल अमानवीय परिस्थितियों में रखा गया, बल्कि विरोध करने पर मारपीट और बिजली के झटके तक दिए जाते। इनमें अधिकांश परेशान, कुछ बूढ़े, कुछ दिव्यांग शामिल हैं। हालत इतनी गंभीर कि किसी को खुद का तो, किसी को अपने गांव तक का नाम तक नहीं मालूम। वे इतने डरे हुए थे कि पुलिस के होते हुए भी थरथर कांपते रहे। पुलिस के अनुसार, मुक्त कराए गए मजदूरों में उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उड़ीसा, गुजरात, झारखंड के लोग शामिल हैं।

इंग्लिश-मैथ्स के टीचर से वर्षों गोबर उठवाया प्रशासन ने बीनागंज इलाके से रामा नाम के एक व्यक्ति का रेस्क्यू किया। उन्होंने बताया, मैं गुजरात का रहने वाला हूं और अहमदाबाद स्थित मानव चेतना हाई स्कूल में टीचर था। कक्षा 10वीं के स्टूडेंट्स को इंग्लिश और मैथ्स पढ़ाता था। वर्षों पहले शिरडी से पैदल मथुरा की यात्रा पर निकला था, लेकिन रास्ते में बीनागंज (चांचौड़ा) में कुछ लोगों ने मुझे पकड़ लिया।

वे मुझे अपने घर ले गए और घर व खेतों के गोबर उठवाना, पशुओं की देखभाल करना जैसे काम में लगा दिया। जब भागने की कोशिश करता तो डराया जाता कि बाहर निकलोगे तो और लोग पकड़ लेंगे और फिर कभी बाहर नहीं जा पाओगे। मैंने कई बार निवेदन किया कि मुझे छोड़ दीजिए, लेकिन उन्होंने रहम नहीं किया।

NTPC में काम कर चुका युवक भैंसों का गोबर उठाता यूपी के रायबरेली निवासी वीरेंद्र यादव ने बताया कि वह पहले समोसा बनाने का काम करते थे और इसके अलावा उन्होंने NTPC (नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन) में भी काम किया था। काम के सिलसिले में जब वह मध्यप्रदेश आए, तो एक दिन उनसे कहा गया कि अब तुम्हें आगे पैदल ही जाना होगा।

इस दौरान बीनागंज क्षेत्र में ‘भूरा’ नाम के व्यक्ति ने उन्हें बुलाया और अपने घर ले जाकर बंदी बना लिया। युवक ने बताया, मुझसे भैंसों का गोबर उठवाया जाता था, चारा डालना, नहलाना जैसे सारे काम करवाए जाते। कहीं बाहर जाने की इजाजत नहीं थी। हर समय निगरानी में रखा जाता।

भैंसों के कमरे में सुलाया जाता था बीनागंज इलाके से मुक्त कराए गए यूपी के फतेहपुर जिले के विमल कुमार ने बताया कि वे कानपुर से यात्रा कर रहे थे। गुना में उनकी गाड़ी खराब हो गई। उसी दौरान एक व्यक्ति मिला और कहा कि वह उन्हें आगे छोड़ देगा। भरोसा कर वे उसके साथ चल दिए, लेकिन वह व्यक्ति उन्हें अपने घर ले गया और जबरन मजदूरी पर लगा दिया। बिट्टू नाम के एक व्यक्ति ने मुझे पकड़ रखा था।

विमल ने बताया, मुझे केवल रोटी खाने को दी जाती थी, नहाने के लिए साबुन तक नहीं मिलता। जहां भैंसें बांधी जाती थीं, उसी कमरे में एक कोने में बिस्तर डालकर मुझे सुलाया जाता था।

खेतों, होटल, ढाबों में मजदूरी करते मिले चांचौड़ा क्षेत्र में मानसिक विक्षिप्तों को बंधक बनाकर जबरन मजदूरी कराए जाने की लगातार शिकायतें प्रशासन को मिल रही थीं। इन्हें गंभीरता से लेकर कलेक्टर के निर्देश पर चांचौड़ा एसडीएम रवि मालवीय ने गुरुवार को कार्रवाई के लिए पांच टीमों का गठन किया। इन टीमों में राजस्व विभाग, पुलिस और नगर पालिका के अधिकारी शामिल थे। शुक्रवार सुबह सभी टीमें अलग-अलग स्थानों के लिए रवाना हुईं।

जिन जगहों पर ऐसे मजदूरों के होने की सूचना थी, ऐसे करीब एक दर्जन गांवों में एक साथ दबिश दी गई। इस दौरान पीड़ित होटल-ढाबों, खेतों और ईंट भट्टों पर बेहद दयनीय स्थिति में मजदूरी करते हुए मिले। इनसे घंटों तक लगातार काम करवाया जाता और बदले में केवल खाना खिलाते थे। न सैलरी, न मानवीय व्यवहार, सिर्फ शोषण। टीमों ने मौके से कुल 16 मजदूरों को रेस्क्यू किया।

उन्हें सबसे पहले बीनागंज स्वास्थ्य केंद्र लाया गया, प्राथमिक चिकित्सा, खाना खिलाने के बाद जरूरत की चीजें उपलब्ध करवाई गईं। फिलहाल सभी पीड़ितों को पुनर्वास के लिए “अपना घर” आश्रम, शिवपुरी भेजा गया है। प्रशासन अब इनकी पहचान और पुनर्वास की प्रक्रिया में जुटा है।

शाम के समय कलेक्टर किशोर कुमार कन्याल जिला अस्पताल पहुंचे और रेस्क्यू किए गए मजदूरों से मुलाकात की। उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति के स्वास्थ्य की जानकारी ली और उनके हालात की समीक्षा की। उन्होंने कहा कि पीड़ितों के लिए उचित चिकित्सा, देखभाल और पुनर्वास की व्यवस्था प्रशासन सुनिश्चित करेगा।

डॉक्टर बोले- इनको सिर्फ भोजन दिया ताकि ये जिंदा रहें मुक्त कराए गए विक्षिप्तों की जांच करने वाले जिला अस्पताल के डॉ. सोवरन राय ने कहा, इनसे इतना काम कराया गया है कि हालत ठीक से बताने लायक नहीं हैं, इनके स्वास्थ्य का न तो ध्यान रखा गया और न ही बीमार पड़ने पर इलाज कराया गया।

उन्होंने कहा कि जांच में कुछ लोगों को स्किन, फेफड़ों की परेशानी, तो कुछ लोगों को सर्जिकल परेशानी सामने आई है। इनको पकड़ने वालों का एक ही उद्देश्य रहा है कि जितना हो सके इनसे काम कराएं और सिर्फ खाना दें, ताकि ये जिंदा रहें। यह मानवता को शर्मसार करने वाला है।

 

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