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पटना
राज्य में नक्सलियों के घटते प्रभाव का असर अवैध ढंग से की जा रही अफीम की खेती पर भी पड़ा है। बिहार पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के सघन ऑपरेशन से उनका दायरा अब झारखंड के सीमावर्ती जंगली इलाकों तक ही रह गया है। इन इलाकों में भी सेटेलाइट तस्वीरों और ड्रोन की मदद से अफीम के अवैध खेतों को चिह्नित कर कार्रवाई की जा रही है।
छह माह में करीब आठ सौ एकड़ में लगी अफीम की फसल नष्ट
बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) और अन्य केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों ने पिछले छह माह में करीब आठ सौ एकड़ में लगी अफीम समेत अन्य मादक पदार्थों की अवैध खेती को नष्ट किया है।
इसमें 790.5 एकड़ में अफीम, जबकि 21.54 एकड़ में भांग की अवैध खेत को नष्ट किया गया है। इस मामले में 146 प्राथमिकी भी दर्ज की गई हैं, जिसके आधार पर आरोपितों को चिह्नित कर कार्रवाई की जा रही है।
आधी हुई नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या
बिहार में पिछले छह सालों में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या आधी हो गई है। वर्ष 2018 में जहां 16 जिले नक्सल प्रभावित थे वहीं अब सात-आठ जिले ही नक्सली असर वाले रह गए हैं। उत्तर बिहार को नक्सल मुक्त घोषित किया जा चुका है।
अब दक्षिण बिहार में झारखंड से सटे नक्सलियों के बचे-खुचे प्रभावित क्षेत्रों को चिह्नित कर सुरक्षा और संचार के माध्यम मजबूत किए जा रहे हैं। इसका असर भी हो रहा है। पहले जिन इलाकों में पुलिस और सुरक्षाबलों की पहुंच नहीं थी, अब वहां लगातार गश्ती हो रही। इसके कारण इन इलाकों में अफीम की खेती या अन्य अवैध काम कम हुए हैं।
पुलिस के वरीय अधिकारियों के अनुसार, अब अफीम की खेती मुख्य रूप से झारखंड से सटे जंगली इलाकों तक रह गई है। इसमें गया के चकरबंधा और धनगई जबकि औरंगाबाद के कुछ इलाके हैं, जहां इस साल बिहार पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों ने संयुक्त ऑपरेशन चलाया गया है।
ऑपरेशन में मिल रहा लोगों का सहयोग
इस ऑपरेशन में जनसहयोग भी मिल रहा है और आसपास के लोग भी पुलिस को इन अवैध कामों की जानकारी दे रहे हैं। पुलिस का दावा है कि जल्द ही इन सुदूर जंगली इलाकों से भी नक्सल प्रभाव के साथ अफीम की खेती भी इतिहास की बात हो जाएगी।