गर्मी की शुरुआत हुई है। पानी को लेकर त्राहि मचने लगी है। न्यू अशोक नगर ई-ब्लाक के बाहर रविवार दोपहर करीब 3 बजे जैसे ही पानी का टैंकर आया, महिलाएं उसकी ओर दौड़ पड़ीं। पहले पानी लेने के लिए खूब धक्का-मुक्की हुई। फिर टैंकर चालक ने ही लाइन लगवाकर व्यवस्था बनवाई। तब महिलाएं पानी भर पाईं।
रोज नहीं आता टैंकर
सिर पर पानी से भरी 10 लीटर की बाल्टी रख कर और हाथ में पांच लीटर का डिब्बा लटका कर जा रहीं 45 वर्षीय सुमित्रा ने बताया कि पाइपलाइन बिछी है, पर नहीं मिलता। खरीदकर पानी पीने के लिए पैसे नहीं है। इस कारण टैंकर के पानी पर निर्भर हैं। उन्होंने बताया कि टैंकर भी नियमित नहीं आता। एक दिन छोड़कर टैंकर से पानी की सप्लाई होती है।
ऊपर की मंजिलों पर नहीं चढ़ता पानी
पानी भरने आई महिलाओं ने बताया कि इस क्षेत्र में पाइपलाइन में जब भी पानी आता है, भूतल पर रहने वाले ही उसे भर पाते हैं। ऊपर की मंजिलों पर पानी नहीं चढ़ता। भूतल पर भी जो पानी आता है, वह पीने लायक नहीं होता। गंदा होने के कारण वह शौचालय में ही उपयोग हो पाता है। घर के बाकी कार्यों के लिए टैंकर के पानी पर निर्भर रहना पड़ता है।
लोग बिना नहाए ड्यूटी जाने को मजबूर
टैंकर भी रोज नहीं आता, एक दिन छोड़कर आता है। टैंकर के आने का समय भी निर्धारित नहीं है। दोपहर दो से शाम पांच बजे के बीच कभी भी आ जाता है। इस कारण जिस दिन टैंकर के आने की बारी होती है, दोपहर दो बजे से ही उसका इंतजार करना मजबूरी होता है। कभी-कभी तो दो-तीन घंटे इंतजार करते हुए बीत जाते हैं। दोपहर में खाना तक नहीं बना पाते।
महिलाओं ने बताया कि किसी-किसी दिन तो उनके घर के पुरुष स्नान किए बगैर की ड्यूटी चले जाते हैं। कपड़े धोना तो मुश्किल हो गया है, उसके लिए पानी ही नहीं होता। रोज एक-एक जोड़ी कपड़े ही धुल पाते हैं।
दिल्ली जल बोर्ड के सहायक अभियंता ने बताया कि पानी में गंदगी की वजह लीकेज है। एक जगह लीकेज को बंद कर दिया गया है, दूसरी जगह जल्द काम किया जाएगा। पानी के प्रेशर को लेकर भी जहां-जहां परेशानी है, उसे दूर करने के लिए प्रयास जारी हैं। यहां पर कई लोगों ने घरों में कनेक्शन भी नहीं ले रखे हैं।
क्या बोले स्थानीय लोग और विधायक?
मैं दो साल से यहां रह रही हूं। तब से पानी टैंकर से भरने आती हूं। बहुत समस्या होती है। -राजबाला, स्थानीय निवासी
मैं 60 वर्ष की हूं। पाइपलाइन से पानी नहीं आता, इस कारण इस उम्र में टैंकर से पानी भर कर ले जाती हूं। बहुत मुश्किल होती है। – पुष्पा, स्थानीय निवासी