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कानपुर
पिछले कई माह से बीच-बीच में उत्पादन बंद होने के संकट से जूझ रही कानपुर फर्टिलाइजर एंड केमिकल लिमिटेड (केएफसीएल) के प्रबंधन ने आखिर बुधवार रात कंपनी के गेट पर तालाबंदी का नोटिस चस्पा कर दिया। इसके साथ ही सभी कर्मचारियों को 15 दिन के अंदर अपने-अपने भुगतान ले लेने के लिए कहा गया है। इससे पहले भी 2002 से 2012 के बीच कंपनी बंद हो चुकी है।
केंद्र सरकार ने सब्सिडी के भुगतान के लिए ऊर्जा खपत का जो मानक तय किया है वह केएफसीएल के लिए 31 मार्च 2025 तक ही मान्य था। केंद्र सरकार ने इसका नवीनीकरण नहीं किया। केएफसीएल प्रबंधन की इसको लेकर 31 मार्च से लगातार बैठकें हो रही थीं। उसी रात बैठक में यह चर्चा हो गई थी कि इस स्थिति में प्लांट को चलाना संभव नहीं होगा क्योंकि उत्पादन करने में प्रति टन यूरिया पर भारी नुकसान होगा। इसके चलते प्लांट में पहले उत्पादन बंद किया गया।
ठेके पर लिए गए अस्थायी कर्मचारियों को हटाया गया। प्लांट के कर्मचारियों ने मंगलवार को जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन भी किया था और आरोप लगाया था कि अधिकारियों और कर्मचारियों से जबरन इस्तीफे लिए जा रहे हैं। प्लांट को पूरी तरह तालाबंदी पर ले जाने से पहले प्रबंधन की ओर से अधिकारी पुलिस आयुक्त अखिल कुमार से भी मंगलवार को मिले थे और उन्हें हालात की जानकारी दी थी। इसके बाद बुधवार देर रात गेट पर ताला बंदी का नोटिस लगा दिया गया।
इस पत्र में कंपनी के संयुक्त प्रबंध निदेशक आलोक गौड़ ने कहा है कि 2013 के बाद निर्धारित लागत में कोई वृद्धि नहीं हुई। 18 दिसम्बर 2024 को गेल ने हमारे बकाया राशि के चलते गैस सप्लाई बंद कर दी थी। इसकी वजह से 44 दिनों तक गैस नहीं दी गई। इससे करीब 1.10 लाख टन यूरिया का उत्पादन नहीं हुआ। केएफसीएल को पिछले वित्तीय वर्ष में 110 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
12 मार्च 2025 को केस्को ने बकाया राशि वसूलने के लिए कनेक्शन काटने के लिए अधिकारियों को भेजा जिससे कंपनी को उत्पादन अचानक कम करना पड़ा। किसी तरह बिजली कनेक्शन को कटने से रोका गया। 26 मार्च को केस्को ने फिर कनेक्शन काटने के लिए टीम भेजी। तब भी उत्पादन कम करना पड़ा। मार्च में कपनी ने केस्को को 115 करोड़ रुपये दिए जो 10 वर्षों में एक माह में किया गया सबसे बड़ा भुगतान है।
नोटिस में बताया गया कि इन तमाम कारणों से कंपनी की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से पंगु हो गई है। नोटिस में यह भी कहा गया कि सब्सिडी के एनर्जी मानक के चलते कंपनी के पास उत्पादन बंद करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रह गया था।
2002 में डंकन भी बंद हुई थी
वर्ष 2002 में डंकन भी बंद हो गई थी। यह फैक्ट्री 2012 तक बंद रही थी। केएफसीएल के प्रबंधन ने अधिकारियों और कर्मचारियों के बकाए का भुगतान किया था। इस बार समस्या यह है कि केएफसीएल की पैरेंट कंपनी जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड खुद इन स्थितियों में है कि वह अपनी किसी भी सह कंपनी के कर्मचारियों के बकाए का भुगतान नहीं कर सकती।
1969 में शुरू हुआ था यह प्लांट
1969 में यह प्लांट शुरू किया गया था। इसका नाम इंडियन एक्सप्लोसिव लिमिटेड के नाम पर आइईएल था। इसमें चांद छाप यूरिया का निर्माण होता था। 1990 में डंकन ने इसे चलाना शुरू किया।