दिल्ली में संस्थागत प्रसव बढ़कर 95.58 प्रतिशत होने से मातृ मृत्यु दर घटकर 0.50 से कम हो गई है। फिर भी वर्ष 2023 में 142 गर्भवती महिलाओं की मौत हो गई। दिल्ली में नवजात (चार माह तक के) व शिशु (एक वर्ष तक के) मृत्यु दर को कम करना ज्यादा चुनौती बना हुआ है।
2023 में एक वर्ष तक की उम्र के 7439 शिशुओं की मौत
वहीं वर्ष 2023 में एक वर्ष तक की उम्र के 7439 शिशुओं की मौत हो गई। इनमें से 60 प्रतिशत शिशुओं की मौतें चार माह की उम्र से पहले हो गई। शिशुओं की मौतें बढ़ने से शिशु मृत्यु दर बढ़कर 23.61 प्रतिशत हो गई।
7419 शिशुओं की मौत अस्पतालों में हुई। जिसमें से 20.45 प्रतिशत शिशुओं की मौत का कारण गर्भावस्था में ठीक से विकास नहीं हो पाना और कुपोषण रहा। निमोनिया दूसरा बड़ा मौत का कारण बन रहा है। 18.51 प्रतिशत शिशुओं की मौत निमोनिया से हुई।
14.95 प्रतिशत शिशुओं की मौत सेप्टिसीमिया, 9.49 प्रतिशत शिशुओं की मौत सांस की परेशानी, आक्सीजन की कमी और प्रसव के दौरान आक्सीजन की कमी से और 6.27 प्रतिशत शिशुओं की मौत शाक के कारण हुई। इसके अलावा कई अन्य बीमारियां मौत का कारण बनीं।
अमेरिका में क्या है शिशुओं की मौत का आंकड़ा?
डॉक्टर कहते हैं कि संस्थागत प्रसव बढ़ने से दिल्ली सहित देश भर में डेढ़-दो दशक पहले की तुलना में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी आई है, लेकिन अभी बहुत सुधार की जरूरत है। अमेरिका में एक हजार जीवित जन्म लेने वाले शिशुओं में से पांच से छह की मौतें होती हैं। इसकी तुलना में यहां अभी शिशु मृत्यु दर बहुत ज्यादा है।
इसका कारण सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं की कमी है। कई सरकारी अस्पतालों इमरजेंसी सिजेरियन सर्जरी की सुविधा नहीं है। इसके अलावा ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में आउट बार्न एनआइसीयू (नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट) व पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट की कमी है। इस वजह से समय पर जरूरतमंद शिशुओं को इलाज नहीं मिल पाता।