शीर्ष कोर्ट ने यह भी कहा कि संसद या राज्य विधानसभा द्वारा बनाया गया कोई भी कानून न्यायालय की अवमानना नहीं माना जा सकता। पीठ ने कहा कि कानून का पारित होना विधायी कार्य की अभिव्यक्ति है, इसमें तब तक कोई हस्तक्षेप नहीं होता जब तक कि यह संविधान के खिलाफ न हो।