फिनिश भाषा में ‘मां’ का अर्थ होता है धरती। भारत में भी हम धरती को मां मानते हैं। लेकिन जिस देश में प्रकृति को देवता जैसा पूजने की संस्कृति है, वहां वन लगातार सिमट रहे हैं। भारत का वन क्षेत्र अभी लगभग 25% है, जिसे बढ़ाकर 33% करने का लक्ष्य है। जबकि वैश्विक औसत 31% है। भारत ने 2070 तक कार्बन न्यूट्रल बनने की घोषणा की है, पर यह लक्ष्य कानूनों से नहीं, समाज को प्रकृति से जोड़कर ही पूरा हो सकता है। इसी सीख की तलाश में हम पहुंचे आर्कटिक सर्कल के पास स्थित फिनलैंड के योन्सू शहर, जिसे ‘यूरोप की फरेस्ट कैपिटल’ कहा जाता है। यहां वन सिर्फ जंगल नहीं, जीवन और अर्थव्यवस्था का मूल आधार हैं। फिनलैंड के 80% हिस्से में वन हैं, और 70% जंगल निजी स्वामित्व में हैं। लगभग हर परिवार के पास खुद का जंगल है। यहां लोग पेड़ों को परिवार की तरह पालते हैं। भारत में वानप्रस्थ जीवन का अंतिम चरण माना गया है, लेकिन यहां लोग हर गर्मी में स्वेच्छा से ‘वानप्रस्थ’ जीते हैं। फिनलैंड की कुल 55 लाख आबादी में से 5 लाख लोगों के पास अपने फारेस्ट काटेज हैं। वे बिजली और इंटरनेट छोड़ जंगलों में रहते हैं, झीलों से पानी लेते हैं, बैरी तोड़ते हैं। यह प्रकृति से जुड़ाव का जीवंत उदाहरण है।
तकनीक का सही उपयोगः पेड़ों की सेहत जानने वनों के ऊपर उड़ते हैं एयरशिप
केल्लु कंपनी ने फिनिश परम्परा को समझा और इसमें व्यापार तलाश लिया। उन्होंने तकनीक का उपयोग करते हुए दर्जनों हाइड्रोजन गुब्बारे (एयरशिप) बनाए हैं जो नार्थ करेलिया के जंगलों के ऊपर मंडराते रहते हैं। कंपनी के सेल्स हेड जानी जारमक्खा बताते हैं कि उद्देश्य यही है कि वनों में लगने वाली आग,बीमारी का समय से पता लगाया जा सके। उपरोक्त एयरशिप में उच्च क्षमता वाले उपकरण लगे हैं जो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के माध्यम से विश्लेषण कर जंगल की सेहत का पता लगाते हैं। जिस पेड़ की ग्रोथ कमतर हो रही होती है उसे पेड़ को विशेष जीपीएस कोआर्डिनेट दे दिया जाता है। जीपीएस के माध्यम से टीम पहुंचकर जरूरी उपचार करती है। आश्चर्यजनक बात यह है कि लोग इसके लिए कंपनी को फीस चुकाते हैं। ठीक वैसे ही जैसे हम बच्चों को डाक्टर की वेक्सीनेशन या दवा की फीस देते हैं। चर्चा के दौरान जारमक्खा ने बताया कि उपरोक्त एयरशिप भारत में होने वाली भूस्खलन की पूर्व चेतावनी दे सकती है क्योंकि लगातार डेटा हासिल कर उनके विश्लेषण से यह पता लगाना संभव है कि कौन सी चट्टान,मिट्टी या पेड़ों का समूह आने वाले समय में किस तरह रिएक्ट करेगा
शिक्षा और अर्थव्यवस्था में वन
सिटी आफ योन्सू संस्था की प्रोजेक्ट मैनेजर एन कोकेनोन कहती हैं कि यहां स्कूल से लेकर यूनिवर्सिटी तक वनों की पढ़ाई होती है। यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्टर्न फिनलैंड में फारेस्ट्री सबसे लोकप्रिय कोर्स है। नेचुरल रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट ( ल्यूक) योन्सू में सीनियर विज्ञानिक एवं रिसर्चर सौरदीप्त गांगुली भारत के देहरादून से पढ़ाई करके योन्सू में लकड़ी पर रिसर्च प्रोजेक्ट लीड कर रहे हैं। गांगुली की माने तो यहां वनों पर गंभीर रिसर्च होती है, जिससे बायोफ्यूल, बायोप्लास्टिक, ग्रीन बिल्डिंग सामग्री और वुड कंक्रीट जैसे उत्पाद बनाए जा रहे हैं। सरकार इनपर खूब मेहनत करती है जिसे भारत को भी सीखना चाहिए। बिजनेस योन्सू की प्रतिनिधि एना मारिया कहती हैं कि योन्सू की इकोनॉमी वन आधारित है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यहां टिंबर व्यापार, बायोफ्यूल और लकड़ी की मशीनरी का निर्यात होता है। लकड़ी से मल्टीस्टोरी बिल्डिंग, स्टेडियम और रिसर्च संस्थान बनाए गए हैं जो आग और पानी दोनों से सुरक्षित हैं। सर्दियों में पूरा शहर वनों से बने बायोफ्यूल पर आधारित हीटिंग सिस्टम से गर्म रहता है।
विशेषज्ञों की राय: भारत क्या सीखे
यूरोपीय फॉरेस्ट इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर रॉबर्ट मावसार का कहना है कि भारत को टिकाऊ वन प्रबंधन के लिए लोक सहभागिता जरूरी है। कानूनों के दम पर वनों की रक्षा सीमित हो सकती है, जब तक लोग इससे आत्मीय रूप से न जुड़ें। ल्यूक संस्थान के वैज्ञानिक लॉरी सिकानेन कहते हैं कि भारत में जनसंख्या का दबाव है, लेकिन यदि स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार वनों का सतत उपयोग हो, तो वन बच भी सकते हैं और विकास का इंजन भी बन सकते हैं। फिनलैंड के योन्सू से भारत सीख सकता है कि वनों को पूजना काफी नहीं, उन्हें समझना, सहेजना और जीवनशैली का हिस्सा बनाना जरूरी है। जब तक जंगल हमारे आर्थिक ढांचे और शिक्षा में शामिल नहीं होंगे, तब तक कार्बन न्यूट्रल बनने का सपना अधूरा रहेगा। फिनलैंड जैसे उदाहरण भारत को टिकाऊ विकास की राह दिखा सकते हैं।
लकड़ी से बहुमंजिला इमारतें, स्टेडियम बना लिए, ऊर्जा जरूरतें पूरी कर ली
नार्थ करेलिया में कई बहुमंजिला भवन लकड़ी से बनाए गए हैं। इस क्षेत्र में कार्यरत रिसर्च इंस्टीट्यूट ल्यूक की भव्य इमारत लकड़ी की कारीगरी का उत्कृष्ठ उदाहरण है। पास ही स्थिति बास्केटबाल का स्टेडियम और रहवासी इमारतें बताती हैं कि लकड़ी को सतत विकास की प्रक्रिया में योन्सू के वानिकी वैज्ञानिक कितना आगे लेकर आ गए हैं। तकनीक का इस्तेमाल कर लकड़ी को वाटरप्रूफ और फायरप्रूफ बना दिया गया है, ठीक वैसे ही जैसे सीमेंट कांक्रीट होता है। यह उत्पाद अधिक से अधिक किफायती इसलिए हो गए हैं क्योंकि इसकी प्रोसेस में शामिल हर प्रक्रिया के प्रोडक्ट का इस्तेमाल करना इन्होंने सीख लिया है, बुरादे से लेकर धुएं तक का। सर्दियों के दिनों में जब तापमान जीरो डिग्री के नीचे होता है तब पूरे शहर को वनों से बनाए गए बायोफ्यूल के माध्यम से चलने वाले हीटिंग सिस्टम से ही गर्म रखा जाता है।