इस पर सिब्बल ने कहा कि जो वक्फ पंजीकृत नहीं है और वक्फ बाई यूजर (उपयोग के आधार पर वक्फ) हैं उनका क्या? नए कानून में हमें वक्फ बाई यूजर में वक्फ करने वाले का नाम और पता बताना होगा और अगर हम नहीं बता पाएंगे तो वे रजिस्टर नहीं करेंगे और वे कहेंगे कि रजिस्टर नहीं है, इसलिए वक्फ नहीं हैं।
अंतरिम आदेश के मुद्दे पर पहले याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील सिब्बल की दलील थी कि कहा जा रहा है कि यह कानून वक्फ की सुरक्षा के लिए है, जबकि इसका उद्देश्य वक्फ पर कब्जा करना है।

सिब्बल ने कानून की विभिन्न धाराओं का उल्लेख किया

उन्होंने कहा कि कानून इस तरह बनाया गया है कि बिना किसी प्रक्रिया का पालन किए वक्फ संपत्ति छीन ली जाए। सिब्बल ने कानून की विभिन्न धाराओं को उल्लेखित कर उनकी वैधानिकता पर सवाल उठाया और कानून को संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में मिले धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया।

उन्होंने संशोधित कानून में वक्फ बाई यूजर को खत्म करने, केंद्रीय वक्फ परिषद में और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने और वक्फ करने वाले के लिए पांच साल का प्रेक्टिसिंग मुस्लिम होने की शर्त को गलत बताया।
गैर पंजीकृत वक्फ को वक्फ संपत्ति न मानने पर भी सवाल उठाया। कोर्ट ने भी सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं का पक्ष स्पष्ट समझने के लिए कई सवाल पूछे जैसे कि क्या पहले के वक्फ कानून में वक्फ पंजीकृत कराना जरूरी था या स्वैच्छिक था? क्या पंजीकृत न कराने का कोई परिणाम भी तय था?

सिब्बल के अलावा इन वकीलों ने पेश की अपनी दलीलें

सिब्बल ने कहा कि कानून में वक्फ पंजीकृत कराने की बात थी और मुतवल्ली की जिम्मेदारी थी वक्फ पंजीकृत कराएं और वक्फ पंजीकरण न कराने पर मुतवल्ली पर कार्रवाई होने की बात थी लेकिन उस कानून में पंजीकृत न होने पर वक्फ समाप्त होने की बात नहीं थी

सिब्बल के अलावा याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी, सीयू सिंह, राजीव धवन, हुजैफा अहमदी ने भी पक्ष रखा। सभी ने याचिकाओं पर अंतिम फैसला आने तक कानून पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की।

सीजेआई ने पूछे कई सवाल

अंतरिम आदेश की मांग पर सीजेआइ ने कहा कि संविधान के बारे में संवैधानिकता की धारणा होती है और जब तक कोई स्पष्ट मामला न बनता हो, अदालतें हस्तक्षेप नहीं करतीं। हालांकि सिब्बल ने संशोधित कानून के प्रविधान पर सवाल उठाते हुए कहा कि वक्फ संपत्ति का प्रबंधन करने का अधिकार छीन लिया गया है।

पहले संपत्ति को प्राचीन धरोहर के रूप में संरक्षित करने के बावजूद संपत्ति की वक्फ की पहचान समाप्त नहीं होती थी। जबकि नए कानून में अगर वह संरक्षित स्मारक घोषित है तो वक्फ नहीं रहेगी।
इसी समय सीजेआइ ने खजुराहो का उदाहरण देते हुए कहा कि वह हाल में खजुराहो गए थे वहां मंदिर प्राचीन स्मारक के रूप में संरक्षित हैं लेकिन लोग वहां पूजा करते हैं।

सीजेआई ने कही ये बात

सीजेआइ ने सिब्बल से सवाल किया कि क्या अब आपसे वहां प्रार्थना करने का अधिकार छिन जाता है। सिब्बल ने कहा कि नया कानून कहता है कि जो संपत्ति प्राचीन स्मारक या संरक्षित संपत्ति घोषित हो जाती है, तो वह वक्फ नहीं रहती।

एक बार वक्फ समाप्त हो जाने के बाद मेरा उस पर अधिकार नहीं रह जाता। कोर्ट ने केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्डों में गैर मुस्लिम सदस्यों का बहुमत होने की सिब्बल की दलील पर भी कई सवाल पूछे और कानून का बारीकी से विश्लेषण किया।
सिब्बल का कहना था कि जब हिंदू धर्मार्थ ट्रस्ट, सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और ईसाइयों के मामले में कोई दूसरे धर्म का नहीं होता तो फिर सिर्फ मुसलमानों के मामले में ऐसा कैसे हो सकता है। यह समानता के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
केंद्र ने दलील दी कि 2013 के संशोधन के बाद वक्फ संपत्तियों में 1600 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस पर ¨सघवी ने कहा कि यह वृद्धि डिजिटलीकरण और सूचीबद्ध प्रक्रियाओं के कारण हुई है, न कि नए अधिग्रहणों के कारण।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखी अपनी बात

मंगलवार को मामले पर नियमित बहस शुरू होने के पहले केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अंतरिम आदेश के पहलू पर सुनवाई तीन मुद्दों तक सीमित रखने का आग्रह किया। कहा- कोर्ट ने ये तीन मुद्दे तय किए थे और उन्हीं पर केंद्र ने जवाब दाखिल किया है। लेकिन सिब्बल ने इसका विरोध करते हुए कहा कि कोर्ट ने ऐसा आदेश नहीं दिया था। बहस कानून के सभी मुद्दों पर होगी।

सुनवाई टुकड़ों में नहीं हो सकती- अभिषेक मनु सिंघवी

अभिषेक मनु सिंघवी ने भी कहा कि सुनवाई टुकड़ों में नहीं हो सकती। बता दें कि पहला मुद्दा उन संपत्तियों को डिनोटिफाई करने की शक्ति से संबंधित है जिन्हें अदालतों द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ-बाय-डीड के रूप में घोषित किया गया है।

दूसरा मुद्दा राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित है, जहां उनका तर्क है कि केवल मुसलमानों को कार्यरत होना चाहिए। तीसरा मुद्दा उस प्रविधान से संबंधित है जो कहता है कि जब कलेक्टर यह जांच करता है कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, तो वक्फ संपत्ति को वक्फ के रूप में नहीं माना जाएगा।

एआइएमआइएम, जमीयत उलमा-ए- हिंद ने दाखिल की हैं याचिकाएं

वक्फ संशोधन कानून 2025 की संवैधानिकता पर कोर्ट पांच मुख्य याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है जिनमें एआइएमआइएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी व जमीयत उलमा ए हिंद की याचिका शामिल हैं। पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने केंद्र की ओर दिए गए आश्वासन को दर्ज किया था।

केंद्र सरकार ने कोर्ट को कही थी ये बात

केंद्र सरकार ने कोर्ट को भरोसा दिलाया था कि अगले आदेश तक केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति नहीं की जाएगी। इसके अलावा केंद्र ने यह भी कहा था कि अधिसूचित या पंजीकृत वक्फ जिनमें वक्फ बाई यूजर (उपयोग के आधार पर वक्फ) भी शामिल हैं, उन्हें गैर अधिसूचित नहीं किया जाएगा और न ही उनकी प्रकृति में बदलाव किया जाएगा।