2.0kViews
1440
Shares
बेतिया
जिले में भीषण गर्मी पड़ रही है। तापमान 40 डिग्री के पार पहुंच गया है। गर्मी से जन जीवन बेहाल है। गर्मी का असर पशुओं पर भी पड़ रहा है।
गर्मी की वजह से पशुओं में हीट स्ट्रेस का खतरा बढ़ गया है। इससे पशुओं में तेज सांस लेना, पसीना आना, दूध उत्पादन में कमी, सुस्ती, और चारा कम खाना जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं।
तापमान बढ़ने से पशुओं में हीट स्ट्रेस हो सकता है, जिससे उनका स्वास्थ्य और दूध उत्पादन प्रभावित होता है। चिकित्सकों का कहना है कि गर्मी के कारण दूध उत्पादन कम हो सकता है, इसलिए पशुओं को हीट स्ट्रेस से बचाना ज़रूरी है।
जैसे-जैसे गर्मियों का तापमान बढ़ता है, डेयरी गायों को गर्मी के तनाव का अधिक खतरा होता है। गर्मी से तनावग्रस्त डेयरी गायों को शुष्क पदार्थ का सेवन कम हो जाता है, जिससे दूध का उत्पादन कम हो जाता है। किसानों को प्रजनन क्षमता में कमी या गर्भावस्था का नुकसान और लंगड़ापन की समस्याएं भी बढ़ सकती हैं।
आधा से अधिक कम हुआ दूध का उत्पादन
पशु चिकित्सक डॉ संजय कुमार का कहना है कि इन दिनों पशुओं को ठंडे जगह पर रखनी चाहिए। बगीचा और पेड़ों की छांव उनके लिए उपयुक्त जगह हो सकता है। पशुओं को सूर्य की सीधी किरणों से बचानी चाहिए।
जिले में 350356 पशु है। प्रतिदिन 1401424 लीटर दूध का उत्पादन होता है।हाल के दिनों में दूध का उत्पादन कम हुआ है।
पशुपालक वीरेंद्र साह ने बताया कि मेरी गाय पांच लीट दूध देती थी। गर्मी के कारण अभी एक लीटर दूध दे रही है। भैंस भी दस लीटर दूध देती थी, जो अभी मात्र पांच लीटर दे रही है।
पशुओं में लू लगने के लक्षण
पशुओं में लू लगने के कई लक्षण होते हैं। तेज ज्वर, पशुओं द्वारा मुंह खोल जोर-जोर से सांस लेना, हाफना तथा मुंह से लार गिराना लू लगने का लक्षण है।
लू लगने के कारण पशुओं के भूख में कमी हो जाती है। इससे पानी अधिक पीना व पेशाब कम होना भी शुरू हो जाता है। इस दौरान पशुओं की धड़कन तेज हो जाती है।
लू से बचाव के लिए पशुओं को धूप से दूर रखना चाहिए। पशुओं को हवादार घर तथा छायादार वृक्ष के नीचे रखना चाहिए। ताकि सूर्य की सीधी किरण पशुओं को नहीं लगे।
खासकर पशुओं को ठंडा रखने के लिए जूट अथवा टाट का छप्पर होना चाहिए। पंखे अथवा कूलर का यथासंभव उपयोग करना चाहिए। पशुओं को स्वच्छ जल पिलाना चाहिए।
साथ ही समुचित आहार के साथ साथ उचित मात्रा में खनिज मिश्रण देना चाहिए। भैंस को दिन में दो-तीन बार नहलाना चाहिए। जबकि पशुओं को चराने के लिए अहले सुबह व शाम में देर से भेजना चाहिए।
यह है उपचार
पशु चिकित्सक डॉ. अतुल कुमार कहते है कि सर्वप्रथम पशुओं के शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए उसे ठंडे स्थान पर रखना आवश्यक है।
ठंडे पानी में तैयार किया हुआ चीनी, भुने हुए जौ या आटा में थोड़ा सा नमक का घोल बराबर पिलाते रहना चाहिए। इसके साथ ही पशु को पुदीना व प्याज का आर्क बना कर देना, शरीर के तापमान को कम करने वाले औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।
पशुओं के शरीर में पानी की कमी को पूरा कराने के लिए इलेक्ट्रोलाइट थेरेपी करना अनिवार्य है। दियारा क्षेत्रों में पशुपालकों को पशुओं को छायादार स्थानों पर रखने व पर्याप्त पेयजल व्यवस्था रखने, पशुओं को आवश्यक मात्रा में चारा दाना उपलब्ध कराने, विषम परिस्थिति में बबूल, शीशम, पीपल आदि के पत्ते का उपयोग सीमित मात्रा में किया जा सकता है।