माता-पिता की देखभाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने माता-पिता की देखभाल के बारे में कहा है कि बूढ़े माता-पिता की देखभाल बच्चों के लिए वैसा ही कर्तव्य है जैसे नाबालिगों की देखभाल करना माता-पिता का दायित्व होता है। सुप्रीम कोर्ट ने बूढ़ी मां के मुआवजे के दावे को न सिर्फ स्वीकार किया, बल्कि मुआवजे की कुल रकम भी 15,97,000 बढ़ा कर 19,22,356 रुपये कर दी। इस मामले में 55 वर्षीय महिला पारस शर्मा की 26 जनवरी, 2008 को सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। उसकी विवाहित बेटी और साथ रह रही बूढ़ी मां दोनों ने मुआवजा दावा दाखिल किया था।
हाई कोर्ट ने विवाहित बेटी का मुआवजा घटा दिया था, जबकि बूढ़ी मां का मुआवजा दावा खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट से पहले मोटर दुर्घटना ट्रिब्युनल ने दोनों के मुआवजा दावे स्वीकार करते हुए कुल 15,97,000 रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया था। ट्रिब्युनल ने माना था कि दोनों मृतक महिला के कानूनी वारिस हैं और कुछ हद तक उस पर आश्रित थे। ट्रिब्युनल ने 50 फीसद डिपेंन्डेंसी मानी थी। सुप्रीम कोर्ट के सामने विचार के लिए कानूनी सवाल था कि क्या याचिकाकर्ता (दोनों) ट्रिब्यूनल द्वारा आश्रित मान कर दिए गए मुआवजे के पात्र हैं क्योंकि दोनों का दावा था कि वे मृतक पर आश्रित थे।
ससुराल और मायके की संपत्ति में बेटी का अधिकार कहां?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 166 और 168 में मृतक और दावाकर्ता के आर्थिक रिश्ते पर फोकस किया गया है। कोर्ट ने कहा कि विवाहित बेटी को मंजूरी बेरा फैसले (पूर्व फैसले) के मुताबिक कानूनी प्रतिनिधि माना जा सकता है, लेकिन वह आश्रित मुआवजा की पात्र नहीं होगी जबतक कि वह ये साबित न कर दे कि वह मरने वाले पर आर्थिक रूप से निर्भर थी। पीठ ने कहा कि रिकार्ड देखने से ये स्पष्ट है कि बेटी यह साबित करने में नाकाम रही कि वह शादी के बाद मां से आर्थिक सहारा पाती थी। इसलिए, उसे मां पर आश्रित नहीं कहा जा सकता।
धारा 140 के तहत मुआवजा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे में हाई कोर्ट का मंजूरी बेरा फैसले के आधार पर बेटी को मृतक का कानूनी प्रतिनिधि मानते हुए सिर्फ धारा 140 के तहत मुआवजा देना ठीक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आश्रित न होने पर भी इस धारा में उसका हक समाप्त नहीं होता। लेकिन मां का दावा खारिज करने के हाई कोर्ट के फैसले को गलत बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब पारस शर्मा की मृत्यु हुई, उस समय उसकी मां 70 वर्ष थी और वह पूरी तरह बेटी पर निर्भर थी और उसके साथ रहती थी, उसकी कोई अलग से आय नहीं थी। इस बात का विरोध करने वाला कोई साक्ष्य रिकॉर्ड पर नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि बुढ़ापे में माता-पिता की देखभाल करना बच्चे का वैसा ही कर्तव्य है जैसे कि नाबालिग होने पर बच्चे की देखभाल करना माता-पिता का दायित्व होता है।
कोर्ट ने कहा कि मां आश्रित है और बेटी की असमय मौत से उसके सामने कठिनाई हो सकती है। मां का दावा विवाहित बेटी के दावे से भिन्न है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे की फिर से गणना करते हुए मुआवजा राशि बढ़ा कर 19,22,356 रुपये कर दी और मां को 19,22,356 रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है।