इसी बीच गुरुवार को कानपुर में उसकी मौत हो गई। आशंका जताई जा रही है कि पटौदी की मौत भी बर्ड फ्लू से हुई है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) बरेली से आई चिकित्सकों के टीम की जांच में उसके अंदर भी वैसे ही लक्षण थे, जैसे भेड़िया भैरवी और बाघिन शक्ति में मिले थे।
चिड़ियाघर के उपनिदेशक डा. योगेश प्रताप सिंह ने बताया कि पटौदी को जंगल से रेस्क्यू कर सबसे पहले वर्ष 2012-13 में गुजरात के शक्करबाग लाया गया था। कुछ वर्षों बाद इसे इटावा सफारी पार्क भेज दिया गया। इसके बाद वह गोरखपुर चिड़ियाघर आया था। बीमार होने और जांच में लिवर समेत शरीर में संक्रमण मिलने पर वन मंत्री के निर्देश पर उपचार के लिए कानपुर चिड़ियाघर भेजा गया था।
डा. योगेश ने बताया कि वह पहला ऐसा बब्बर शेर था, जिसे वन विभाग की टीम रेस्क्यू नहीं करना चाहती थी। इसकी मां को टीम रेस्क्यू कर रही थी। इस दौरान वह डेढ़ से दो वर्ष का था और अपनी मां के साथ ही घूम रहा था, जिससे इसे भी रेस्कयू करना पड़ा। करीब 15 वर्ष के जीवनकाल में इसने चार चिड़ियाघरों का भ्रमण किया और वहां की शोभा बढ़ाई।