उन्होंने कहा कि इस साल 30 से 40 प्रतिशत फीस बढ़ाई गई है। लगातार शिकायतें आ रही हैं। जरूरी है कि सरकार इन स्कूलों को नियमों के दायरे में लाए, ताकि उनके मनमाने रवैये को बदला जा सके। एक अन्य शिक्षक संगठन के महेश मिश्रा ने बताया कि उनके पास 70 स्कूलों की जानकरी आई है। जिन्होंने 25 प्रतिशत तक फीस बढ़ाई है।

पांच साल में कितनी बढ़ी फीस?

उन्होंने कहा, “द्वारका के नामी स्कूल ने पांच सालों में 7,785 से फीस बढ़ाकर 16 हजार रुपये कर दी है। शिक्षा निदेशालय से इसकी कोई स्वीकृति नहीं ली गई है। 1973 के एक अधिनियम के तहत जिन स्कूलों को निदेशालय ने जमीन आवंटित की हैं। वह बगैर उनकी स्वीकृति के फीस बढ़ोतरी नहीं कर सकते, लेकिन कोई नियम इन स्कूलों पर नहीं चल रहा है।”

फीस जमा न करने पर छात्रों को पुस्तकालय में रोक दिया जाता है। उन्हें कक्षाएं लेने नहीं दी जातीं। स्कूल अलग-अलग तरह से दबाव बनाते हैं। अभिभावक तनाव में रहते हैं और बच्चों के भविष्य के लिए डरकर मनमाने रूप से मांगी गई फीस भरते रहते हैं। शिक्षा निदेशालय को एक कानून बनाकर स्कूलों के लिए नियम तय करने ही होंगे।