दिल्ली में 60 लाख वाहनों की वैध आयु पूरी हो चुकी है- एएसजी
दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में अवैध वाहनों की आवाजाही काफी ज्यादा
कोर्ट ने तीन महीने का दिया समय
सर्वोच्च अदालत ने केंद्र को इसके आगे निर्देशित किया है कि वह रिमोट सेंसिंग तकनीक के इस्तेमाल को लेकर तीन महीने में अपना अध्ययन पूरा करें। ताकि वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर नियंत्रण रखा जा सके। खंडपीठ ने कहा कि बुधवार से ही तीन माह के अंदर इस अध्ययन को पूरा करना है।
रिमोट सेंसिंग मामले में ध्यान केंद्रित करने को कहा गया है। इस शोध को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने दस से बारह महीनों का समय मांगा है। भाटी ने कहा कि फास्ट टैग प्रणाली अस्तित्व में आ चुकी है। इसलिए अब और समय चाहिए। एमसी मेहता मामले में वर्ष 1984 से सुप्रीम कोर्ट दिल्ली में प्रदूषण के संकट को लेकर क्षेत्र की निगरानी कर रहा है।
निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के राज्य के कर्तव्य को रेखांकित किया। इसके साथ ही एक मामले में गवाहों पर दबाव डालने के मध्य प्रदेश के कांग्रेस विधायक राजेंद्र भारती के आरोपों की बेहतर जांच का निर्देश दिया।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्ल भुइयां की पीठ ने भारती के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलों पर विचार किया, जिन्होंने दावा किया कि मामले में बचाव पक्ष के गवाहों को धमकी देने का प्रयास किया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, ‘यह राज्य का कर्तव्य है कि वह निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करे, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त अधिकारों का एक अनिवार्य हिस्सा है। इसलिए हम निर्देश देते हैं कि बेहतर जांच की जाए और आज से एक महीने के अंदर इस अदालत को रिपोर्ट सौंपी जाए।’
कांग्रेस विधायक राजेंद्र भारती ने लगाए आरोप
भारती ने दावा किया है कि मध्य प्रदेश के पूर्व गृह मंत्री और भाजपा नेता नरोत्तम मिश्रा जिला लोक अभियोजक और अतिरिक्त जिला लोक अभियोजक के साथ मिलीभगत से मुकदमे को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। एक बैंक प्रबंधक ने भारती पर एक खाते में धोखाधड़ी के आरोप में शिकायत दर्ज कराई थी। भारती ने अपनी मां के नाम पर जिला सहकारी ग्रामीण बैंक में कथित तौर पर धनराशि जमा की थी।
आर्थिक अपराधों में षडयंत्र की गहरी जड़ें : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि आर्थिक अपराध एक अलग श्रेणी में आते हैं। इनमें गहरे षडयंत्र और सार्वजनिक धन का बड़ा नुकसान शामिल होता है, इसलिए इन्हें गंभीरता से लिया जाना चाहिए। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने कहा कि अग्रिम जमानत देना निश्चित रूप से नियम नहीं है।
वे अग्रिम जमानत के हकदार नहीं
अदालत ने कहा कि जो आरोपित लगातार अदालत में उपस्थित न होकर कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने से बचते हैं और कार्यवाही को बाधित करने के लिए खुद को छिपाते हैं, वे अग्रिम जमानत के हकदार नहीं हैं। पीठ ने कहा- ”यदि समाज में कानून का राज स्थापित करना है तो हर व्यक्ति को कानून का पालन करना होगा, कानून का सम्मान करना होगा।”