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बेंगलुरु। कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान एवं धर्मार्थ बंदोबस्ती संशोधन विधेयक या हिदू मंदिर विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख लिया है। छह मार्च, 2024 को पारित यह विधेयक 16 मई, 2025 को दोबारा राज्यपाल को भेजा गया था।
विधेयक का उद्देश्य राज्य के हिंदू मंदिरों से प्राप्त राजस्व के बड़े हिस्से का साझा कोष के रूप में उपयोग करना है। राज्यपाल ने कहा है कि वह सरकार के स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हैं। यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन है, इसलिए अदालत के निर्णय की प्रतीक्षा करना चाहिए। ऐसे में विधेयक को मंजूरी देना अनुचित होगा।
राष्ट्रपति के विचार के लिए जाएगा विधेयक
प्रस्तावित विधेयक पर सहमति देने के बजाय मैं इसे राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखना उचित समझता हूं। राज्यपाल ने ऐसे समय में विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखा है जब पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबे समय तक रोके रखने के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राज्यों के विधेयकों पर मंजूरी के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय की थी।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्यपाल द्वारा विचार के लिए भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति को तीन महीने में निर्णय लेना होगा। कर्नाटक के धार्मिक बंदोबस्ती विभाग के मंत्री रामालिंगा रेड्डी ने कहा, विधेयक में प्रविधान है कि यदि मंदिर की आय 10 लाख रुपये तक है तो धर्मिका परिषद को कोई भुगतान नहीं करना होगा।
मंदिरों से ली जाएगी राशि
- 10 लाख से एक करोड़ रुपये तक आय वाले मंदिरों से पांच प्रतिशत और एक करोड़ रुपये से अधिक की आय वाले मंदिरों से 10 प्रतिशत राशि एकत्र करने का प्रविधान है। यह राशि धर्मिका परिषद में जमा होगी। धर्मिका परिषद तीर्थयात्रियों के लाभ के लिए मंदिर प्रबंधन में सुधार के लिए एक समिति है।
- मंत्री ने कहा कि राज्य में 40 हजार से 50 हजार पुजारी हैं, जिनकी सहायता राज्य सरकार करना चाहती है। यदि धर्मिका परिषद को फंड मिलता है तो हम उन्हें बीमा कवर प्रदान कर सकते हैं। प्रीमियम चुकाने के लिए हमें सात करोड़ से आठ करोड़ रुपये की आवश्यकता है। सरकार मंदिर के पुजारियों के बच्चों को छात्रवृत्तियां देना चाहती है।