नई दिल्ली,
आंकड़ों की बात करें तो 1980 में पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय कई पड़ोसी देशों से ज़्यादा थी, अब कम है। पूंजी निवेश और उत्पादकता में लगातार गिरावट है। मानव संसाधन (शिक्षा, कौशल) में निवेश भी कम है। 2000 से पाकिस्तान का निर्यात प्रदर्शन क्षेत्र में सबसे कमजोर रहा है। 2022 तक इसका इकोनॉमिक कांपलेक्सिटी इंडेक्स रैंक 85वां ही बना रहा। हालात ये हो चुके हैं कि आतंक को पोषित करने वाले देश पाकिस्तान में देश की जनसंख्या की एक बड़ी हिस्सेदारी आर्थिक विकास से बाहर रह गई है।
इंफॉर्मेटिक्स रेटिंग्स के चीफ इकोनॉमिस्ट डा. मनोरंजन शर्मा कहते हैं कि पाकिस्तान को 24 बार IMF से बेलआउट पैकेज लेना पड़ा है। ताज़ा स्थिति में IMF ने उसे $2.4 बिलियन का पैकेज मंज़ूर किया है। देश की आर्थिक बदहाली की जड़ें राजनीतिक अस्थिरता, लोकतंत्र की कमजोर बुनियाद, सेना का प्रभाव, गलत आर्थिक नीतियों, घरेलू संसाधनों की अनदेखी और चीन-सऊदी अरब जैसे देशों पर अत्यधिक निर्भरता में हैं। सब्सिडी की राजनीति और सुधारों की अनदेखी ने हालात और बिगाड़े हैं।
पैसे को फेंकने जैसा है पाक को लोन देना
मनोरंजन शर्मा कहते हैं कि रिपोर्ट में महंगाई में थोड़ी नरमी और उपभोक्ता विश्वास में सुधार का ज़िक्र है, लेकिन असल में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अब भी कमजोर है। कर व्यवस्था सीमित है, सब्सिडियों का बोझ अधिक है और सरकारी संस्थान घाटे में चल रहे हैं। न ऊर्जा क्षेत्र में बड़े सुधार हुए हैं, न प्रशासनिक ढांचे में। ऐसे में IMF द्वारा बार-बार मदद देना “अच्छे पैसे को बुरे पैसे के पीछे फेंकने” जैसा है। इंडो-पैसिफिक रणनीतिक सलाहकार और इंडिक रिसर्च फोरम के स्ट्रेटेजिक इंगेजमेंट एंड पार्टनरशिप के डायरेक्टर बालकृष्ण कहते हैं कि पाकिस्तान में कई उद्योग सब्सिडी और सरकारी संरक्षण पर टिके हैं। ये दिखाते हैं कि सब कुछ ठीक है, लेकिन असल में इससे प्रतिस्पर्धा खत्म होती है। जब तक उद्योगों के लिए प्रदर्शन का पैमाना और सब्सिडी खत्म करने की समयसीमा तय नहीं होगी, तब तक आत्मनिर्भरता एक सपना ही बनी रहेगी। इसका नतीजा कमजोर होती अर्थव्यवस्था है जो लगातार बाहरी मदद पर निर्भर रहती है।
राजनीतिक अस्थिरता से विफल है पाकिस्तान
ए.एम.जैन कॉलेज, चेन्नई के डिफेंस एंड स्ट्रेटेजिक स्टडीज के हेड गौरव पांडेय कहते हैं कि 1958 से अब तक 24 बार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मदद लेने के बावजूद पाकिस्तान दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता हासिल करने में नाकाम रहा है। इसकी मूल वजह राजनीतिक अस्थिरता है, जो नीति-निर्माण और सुधारों के अमल में सबसे बड़ी बाधा बनती है। आर्थिक नीतियों में खामियां जरूर हैं, लेकिन वे इस व्यापक प्रशासनिक विफलता का लक्षण मात्र हैं।
आईएमएफ की राहतें केवल तात्कालिक राहत देती हैं, जब तक कि कर वसूली सुधार, राजकोषीय घाटे में कटौती और सब्सिडी सीमित करने जैसे ढांचागत सुधार स्थायी रूप से लागू न किए जाएं। लेकिन पाकिस्तान में अक्सर ये सुधार आधे रास्ते में ही छोड़ दिए जाते हैं। इसकी साफ वजह है जनप्रिय राजनीति का दबाव, नीतिगत पलटबाज़ी और सत्ता में बार-बार बदलाव।
आतंक को बढ़ावा देने के लिए पैसे का इस्तेमाल
मनोरंजन शर्मा कहते हैं कि भारत की चिंता जायज़ है, क्योंकि पाकिस्तान के पास आतंकवाद को बढ़ावा देने का लंबा इतिहास रहा है चाहे वह लश्कर-ए-तैयबा हो या जैश-ए-मोहम्मद। FATF द्वारा 2018 से 2022 तक पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में रखा जाना इसका प्रमाण है। IMF के पास फंड के उपयोग की निगरानी की कोई कड़ी व्यवस्था नहीं है। ऐसे में भारत की यह आशंका कि IMF फंड से बजट संतुलित कर बाकी संसाधन आतंक-समर्थन में लगे रह सकते हैं, पूरी तरह तर्कसंगत है।
दशकों से खस्ताहाल है पाक के हालात
बालकृष्ण कहते हैं कि पाकिस्तान की आर्थिक परेशानियां कोई नई बात नहीं हैं। कम टैक्स वसूली, घटते निर्यात और शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में कम निवेश जैसी समस्याएं दशकों से बनी हुई हैं। ये समस्याएं चाहे सत्ता में लोकतांत्रिक सरकार हो या फौजी हुकूमत कभी भी पूरी तरह हल नहीं हो सकीं। इसका कारण है नीति निर्धारण में पारदर्शिता की कमी और चुनिंदा प्रभावशाली वर्गों के हितों को प्राथमिकता देना।
आईएमएफ से बार-बार कर्ज़ लेकर अर्थव्यवस्था को संभालने की कोशिश तो हुई, लेकिन मूलभूत सुधार नहीं किए गए। इमरान खान का पेट्रोल की कीमतें फ्रीज़ करना या ताकतवर वर्गों पर टैक्स न लगाना इसी सोच का हिस्सा था जिसमें दीर्घकालिक स्थिरता से ज़्यादा तात्कालिक राजनीतिक फायदे को प्राथमिकता दी जाती है। लंबे समय तक सेना का हस्तक्षेप, नागरिक अधिकारों पर रोक और सत्ता में बैठे कुछ लोगों की मनमानी ने जनता का भरोसा तोड़ा है और यही अस्थिरता विदेशी निवेश को भी रोकती है।
आर्थिक बर्बादी की कगार पर पाकिस्तान
मनोरंजन शर्मा मानते हैं कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इतनी खराब हालत में है कि अब कोई ‘आभासी स्थायित्व’ भी नहीं बचा है। सब्सिडी और संरक्षण ने सिर्फ अर्थव्यवस्था को और खोखला किया है। आत्मनिर्भरता और प्रतिस्पर्धा की बात करना तो दूर, पाकिस्तान एक ‘निचले स्तर के जड़त्व’ में फंस गया है। अगर अब भी दिशा नहीं बदली गई, तो पाकिस्तान का आर्थिक दिवालियापन कोई दूर की बात नहीं रह जाएगी।
न्यापालिका भी है कमजोर, सेना का बेजा दखल
गौरव पांडेय कहते हैं कि चुनावों की चिंता में डूबी अस्थायी सरकारें अक्सर कर्ज़ माफ़ी और सब्सिडी जैसी अल्पकालिक योजनाएं लागू करती हैं, जबकि न्यायपालिका और कर विभाग जैसे संस्थान या तो कमज़ोर हैं या फिर राजनीतिक व सैन्य प्रभाव में काम करते हैं। सेना का अर्थव्यवस्था में अत्यधिक दखल फौजी फाउंडेशन जैसे व्यावसायिक उपक्रम, रक्षा बजट का बड़ा हिस्सा और नागरिक शासन में बार-बार हस्तक्षेप आर्थिक निरंतरता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया दोनों को कमजोर करता है।
2016 के पनामा पेपर्स प्रकरण में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की अयोग्यता इस अस्थिर ढांचे का प्रतीक बनी जहां आज तक कोई भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। जवाबदेही की यह ‘चुनिंदा’ प्रणाली, जिसमें केवल नागरिक नेतृत्व को निशाना बनाया जाता है और सैन्य अधिकारी सवालों से परे रहते हैं, न्याय व्यवस्था में गहरे असंतुलन को उजागर करती है।
आईएमएफ के तरीकों से गया गलत संदेश
मनोरंजन शर्मा मानते हैं कि आईएमएफ का पाकिस्तान के साथ व्यवहार अक्सर नरम रहा है। IMF के ऐसे लचीले रुख से न सिर्फ पाकिस्तान को नुकसान हुआ है बल्कि वैश्विक संदेश भी गलत गया है कि नियमों का पालन करने वालों से अधिक लाभ नियम तोड़ने वालों को मिलता है। बालकृष्ण भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि आईएमएफ ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए कई बार समर्थन दिया है, लेकिन सुधारों की ज़मीन पर ज़्यादा कुछ नहीं बदला। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आईएमएफ की रणनीति असरदार है? बार-बार बिना परिणाम के मदद करना IMF की विश्वसनीयता को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
बालकृष्ण चेताते हैं कि आईएमएफ का फोकस आमतौर पर आर्थिक सुधारों पर होता है, लेकिन पाकिस्तान जैसे “गैर-स्थिर” देश में आर्थिक मदद देने से पहले सुरक्षा पहलुओं पर भी ध्यान देना ज़रूरी है। बिना मजबूत निगरानी के दी गई सहायता कहीं गलत हाथों में न चली जाए, वरना इसका असर न सिर्फ अर्थव्यवस्था बल्कि क्षेत्रीय शांति पर भी पड़ सकता है।
बेइंतहा भ्रष्टाचार
गौरव पांडेय कहते हैं कि पाकिस्तान में भ्रष्टाचार, खासतौर से ताकतवर तबकों में, बेधड़क जारी है और सुधार सतही रह जाते हैं। जब तक नागरिक और सैन्य क्षेत्रों में समान जवाबदेही सुनिश्चित करने वाले संस्थागत सुधार नहीं किए जाते, पाकिस्तान इसी दुश्चक्र में फंसा रहेगा — कर्ज़ → संकट → बेलआउट → नाम मात्र सुधार → फिर कर्ज़। इसका मूल कारण राजनीतिक अस्थिरता है, और विफल आर्थिक नीतियां उसी की उपज।
आईएमएफ की निगरानी
बालकृष्ण कहते हैं कि भारत बार-बार यह चिंता जताता रहा है कि IMF से मिला फंड कहीं सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने में इस्तेमाल न हो। पाकिस्तान का सैन्य बजट पारदर्शी नहीं है और उसकी खुफिया एजेंसियों का रिकॉर्ड भी विवादित रहा है। हालांकि IMF ने फंड के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ तकनीकी उपाय किए हैं – जैसे बैंकों की निगरानी और एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग सिस्टम लेकिन इनका असर तभी होगा जब पाकिस्तान खुद ईमानदारी से उन्हें लागू करे। भारत की यह मांग जायज है कि आर्थिक सहायता पर सख्त निगरानी रखी जाए।
ढर्रे से उतरी हुई है पाक की इकोनॉमी, बेहद जर्जर हो चुकी
दरअसल, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह जर्जर हो गई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वित्त वर्ष 2024-25 (जुलाई-जून) में पाकिस्तान की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 3% से घटाकर 2.6% कर दिया है। राजकोषीय घाटा 6.7% रहने का अनुमान है, जो पिछले वित्त वर्ष में GDP का 7.4% था।
पाकिस्तान में रेपो रेट अभी 12% है, जो जून 2024 में रिकॉर्ड 22% पर था। एक डॉलर की कीमत 280 पाकिस्तानी रुपये के बराबर है। मई 2023 में महंगाई दर रिकॉर्ड 38% पर पहुंचने के बाद मार्च 2025 में तीन दशक के सबसे निचले स्त 0.7% पर आई है।
लोगों की माली हालत का आलम यह है कि 40% से अधिक जनता गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही है। अनेक इलाकों में 18-18 घंटे तक बिजली नहीं आने से उद्योग बंद हैं। बेरोजगारी दर 8% पहुंच चुकी है। बिगड़ते आंतरिक हालात के कारण विदेशी निवेश भी नहीं के बराबर हो रहा है।
पाकिस्तान के वित्त और राजस्व मंत्री मुहम्मद औरंगजेब ने राष्ट्रीय विधानसभा में बजट पेश किया था। ये बजट जुलाई 2024 से जून 2025 तक का था। इसका कुल व्यय 18,900 अरब रुपये (लगभग 67.84 अरब अमेरिकी डॉलर) था।