भोपाल |
विश्व अस्थमा दिवस पर विशेषज्ञों ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। मध्यप्रदेश में अस्थमा के मरीजों की संख्या हर साल 8 से 12 फीसदी की दर से बढ़ रही है। वर्तमान में यहां करीब 60 लाख मरीज हैं। इनमें से 1 से 3 प्रतिशत मरीजों की मौत हो जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह बीमारी अब सिर्फ अनुवांशिक नहीं रही, बल्कि वायु प्रदूषण, पराली जलाना, धूल-धुआं, एलर्जी और खराब लाइफस्टाइल इसके मुख्य कारण बन चुके हैं।
रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ रेस्पिरेटरी डिसीज के डॉ. निशांत श्रीवास्तव और डॉ. पराग शर्मा के अनुसार उनके रिसर्च में पता चला है कि अस्थमा के 50-60% मामले ‘हाउस डस्ट माइट’ के कारण हो रहे हैं, जो तकिए, गद्दे और चादरों में पनपता है। बच्चों में यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है। 15 से 20 प्रतिशत बच्चों को अस्थमा है। अस्थमा से होने वाली मौत कुल मरीजों का 1 से 3 प्रतिशत तक है।
दो तरह का अस्थमा… हर साल बढ़ रहे 8-12% मरीज
- एक्यूट अस्थमा : यह अचानक होता है, जैसे गैस लीक, पटाखों का धुआं या वायरस के कारण।
- क्रॉनिक अस्थमा : यह लंबे समय तक चलता है। इसमें सांस की नलियां धीरे-धीरे सिकुड़ती जाती हैं। शुरुआत में खांसी होती है, फिर सांस लेने में तकलीफ बढ़ती है। मरीज को वीजिंग यानी सांस लेने में सीटी जैसी आवाज आती है।
- समय रहते पहचान और सही इलाज से बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है। लेकिन कई मरीज बिना जांच कराए स्टेरॉयड और नेबुलाइजर से इलाज करवा रहे हैं, जिससे अस्थमा दब जाता है पर ठीक नहीं होता।
मुख्य वजह एलर्जी… सूखी खांसी-छींक हैं लक्षण
- डॉ. विकास मिश्रा बताते हैं अस्थमा की मुख्य वजह एलर्जी, प्रदूषण और अनुवांशिकता होती है। भारत में करीब 3 करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं। बच्चों में इसका अनुपात 100 में 15 से 20 बच्चों का है। सांस फूलना, सूखी-बलगम वाली खांसी और छींकें इसके लक्षण हैं। वहीं प्री-मेच्योर बच्चों में इसका खतरा तीन गुना अधिक होता है। लेकिन इन दिनों यह बीमारी सबसे ज्यादा प्रदूषण के चलते देखी जा रही है, जिसके चलते हर करीब 15% मरीज बढ़ रहे हैं। खराब डाइट, एसी में रहना, साफ-सफाई की कमी और एक्सरसाइज न करना भी इसे बढ़ा रहे हैं।
इनसे 80 फीसदी कम करें खतरा… साफ-सफाई, मास्क, इनहेलर और डॉक्टर की सलाह से 80% तक रिस्क को कम किया जा सकता है। मौसम बदलते ही अगर छींकें, सांस फूलना या खांसी की दिक्कत हो रही हो, तो तुरंत जांच कराएं।