उच्च न्यायालय ने उनके इन बयानों को आपत्तिजनक मानते हुए कहा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि ये बयान जानबूझकर न्यायालय और न्यायाधीश के अधिकार को बदनाम करने के लिए दिए गए हैं। ऐसे आरोप न्यायालय की छवि को धूमिल करते हैं। जिस तरह से बयान दिया गया है, वह निश्चित रूप से अवमानना के समान एवं न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप है।

कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिए हैं

इस टिप्पणी के साथ ही उच्चन्यायालय ने मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे, न्यायमूर्ति ए.एस. चांदुरकर, न्यायमूर्ति एम.एस. सोनक, न्यायमूर्ति रवींद्र घुगे और न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी की एक वृहद पीठ गठित पर नीलेश ओझा के विरुद्ध सुनवाई शुरू करने के लिए 29 अप्रैल की तारीख तय कर दी है। कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिए हैं कि वह वकील नीलेश ओझा को सम्मन भेजकर उन्हें इस मामले की सूचना दे दे।

अदालत ने कही ये बात

अदालत ने यूट्यूब और एक मराठी समाचार चैनल को नीलेश ओझा के उक्त संवाददाता सम्मेलन का वीडियो तत्काल हटाने का निर्देश भी दिया तथा भविष्य में इसे अपलोड करने पर भी रोक लगा दी है। बता दें कि मुंबई उच्चन्यायालय में वकील नीलेश ओझा पर दूसरी बार अवमानना का केस चलने जा रहा है।
इससे पहले 2017 में भी पांच जजों की पीठ बनाकर उनके विरुद्ध कोर्ट की अवमानना का मामला शुरू किया गया था। ओझा का कहना है कि उस मामले में अभी तक कोई सुनवाई भी नहीं हुई है।