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नई दिल्ली
लंबे समय तक दहेज के लिए प्रताड़ित होने के बाद अपने मायके में आत्महत्या करने से जुड़े एक मामले में आरोपित पति को राहत देने से इनकार करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम निर्णय दिया है।
न्यायमूर्ति गिरीश कठपालिया की पीठ ने माना कि वैवाहिक घर के बजाय मृतक महिला द्वारा अपने मायके में आत्महत्या करने का मतलब यह नहीं है कि दहेज हत्या का मामला नहीं बनता है।
ससुरालियों पर लगा था दहेज की मांग का आरोप
अदालत ने कहा कि आइपीसी की धारा -304बी के तहत प्रविधान की व्याख्या के लिए विवाह के अस्तित्व और इसके बाद के घटनाक्रम को ध्यान में रखना होगा, न कि उस स्थान को जहां पर आत्महत्या के लिए पीड़िता जाती है।
अदालत ने उक्त टिप्पणी करते हुए दहेज हत्या के एक मामले में आरोपित पति को जमानत देने से इनकार कर दिया। मृतक पत्नी के पिता ने आरोपित व्यक्ति, उसके माता-पिता और बहनों के खिलाफ प्राथमिकी कराई थी।
कोर्ट ने पति के तर्कों को किया खारिज
पति ने तर्क दिया कि मृतक को उसके मायके में ले जाने और आत्महत्या करने के दौरान दहेज की मांग नहीं की गई थी। यह भी कहा कि अदालत के समक्ष ऐसी कोई सामग्री नहीं पेश की गई जिससे स्पष्ट हो कि मृत्यु से ठीक पहले पीड़िता को क्रूरता या दहेज उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था। हालांकि, अदालत ने आरोपित पति के उक्त तर्कों को खारिज कर दिया।
याचिका के अनुसार महिला के पिता ने आरोपित पति के विरुद्ध अप्रैल 2023 में जफ्फारपुर कला थाने में दहेज उत्पीड़न व दहेज हत्या समेत अन्य धाराओं में मामला दर्ज कराया था। मामले में जांच के बाद पुलिस ने आरोपितों के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किया था। अब तक मामले में कुल 40 गवाहों में से छह से पूछताछ हो चुकी है।